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________________ छट्ठो उद्देसओ : किमाहारे' छठा उद्देशक : किमाहार (आदि) चौवीस दण्डकों में आहार-परिणाम, योनि-स्थिति-निरूपण १. रायगिहे जाव एवं वदासी[१] राजगृह नगर में (भगवान् महावीर स्वामी से श्री गौतम स्वामी ने) यावत् इस प्रकार पूछा२. नेरतिया णं भंते ! किमाहारा, किंपरिणामा, किंजोणीया, किंठितीया पन्नत्ता ? गोयमा ! नेरइया णं पोग्गलाहारा, पोग्गलपरिणामा, पोग्गलजोणीया, पोग्गलट्ठितीया, कम्मोवगा, कम्मनियाणा, कम्मट्टितीया, कम्मणामेव विप्परियासमेंति। [२ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव किन द्रव्यों का आहार करते हैं ? किस तरह परिणमाते हैं ? उनकी योनि (उत्पत्तिस्थान) क्या है ? उनकी स्थिति का क्या कारण है ? [२ उ.] गौतम ! नैरयिक जीव पुद्गलों का आहार करते हैं और उसका पुद्गल-रूप परिणाम होता है। उनकी योनि शीतादि स्पर्शमय पुद्गलों वाली है। आयुष्य कर्म के पुद्गल उनकी स्थिति के कारण हैं । बन्ध द्वारा वे ज्ञानावरणीयादि कर्म के पुद्गलों को प्राप्त हैं। उनके नारकत्व निमित्तभूत कर्म निमित्तरूप हैं । कर्मपुद्गलों के कारण उनकी स्थिति है। कर्मों के कारण ही वे विपर्यास (अन्य पर्याय) को प्राप्त होते हैं। ३. एवं जाव वेमाणिया। [३] इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना चाहिए। विवेचन—सकल संसारी जीवों की आहारादि-प्ररूपणा–प्रस्तुत तीन सूत्रों में नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के आहार, परिणमन, योनि एवं स्थितिहेतु की प्ररूपणा की गई है। कठिन शब्दार्थ—पोग्गलजोणीया—पुद्गल अर्थात् शीतादि स्पर्श वाले पुद्गल जिनकी योनि है, वे पुद्गलयोनिक। नारक शीतयोनिक एवं उष्णयोनिक होते हैं। पोग्गलद्वितीया-पुद्गल अर्थात् आयुष्य कर्म पुद्गलरूप जिनकी स्थिति है वे पुद्गलस्थितिक। नरक में स्थिति के हेतु आयुष्य पुद्गल ही हैं । कम्मोवगाजिनको ज्ञानावरणीयादि पुद्गल रूप कर्म बन्ध के द्वारा प्राप्त होते हैं। कम्मनियाणा—जिनके नारकत्व रूप कर्मबन्ध निमित्त (निदान) हैं, वे कर्मनिदान । कम्मद्वितीया-कर्मस्थितिक—कर्मपुद्गलों से जिनकी स्थिति है, वे।कम्मुणामेव विप्परियासमेंति—कर्मों के कारण विपर्यास-पर्यायों (पर्याप्त-अपर्याप्त आदि अवस्थाओं) को प्राप्त हैं। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६४४
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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