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________________ चौदहवाँ शतक : उद्देशक - ५ ३९५ [११] असुरकुमार दस स्थानों का अनुभव करते रहते हैं, यथा—इष्ट शब्द, इष्ट रूप यावत् इष्ट उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार - पराक्रम । १२. एवं जाव थणियकुमारा । [१२] इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए । १३. पुढविकाइया छट्ठाणाई पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा – इट्ठाणट्ठा फासा, इट्ठणिट्ठा गती एवं जाव परक्कमे । [१३] पृथ्वीकायिक जीव (इन दस स्थानों में से ) छह स्थानों का अनुभव करते रहते हैं । यथा— (१) इष्ट अनिष्ट स्पर्श, (२) इष्टअनिष्ट गति, यावत् (३) इष्टानिष्ट स्थिति, (४) इष्टानिष्ट लावण्य, (५) इष्टानिष्ट यश: कीर्ति और (६) इष्टानिष्ट उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार- पराक्रम । १४. एवं जाव वणस्सइकाइया । [१४] इसी प्रकार (अप्कायिक से लेकर) वनस्पतिकायिक जीवों तक कहना चाहिए। १५. बेइंदिया सत्तट्ठाणाई पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा – इट्ठाणिट्ठा रसा, सेसं जहा एगिंदियाणं । [१५] द्वीन्द्रिय जीव (दस में से) सात स्थानों का अनुभव करते रहते हैं, यथा—इष्टानिष्ट रस इत्यादि, शेष एकेन्द्रिय जीवों के समान कहना चाहिए । १६. इंदिया णं अट्ठट्ठाणाई पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा – इट्ठाणिट्ठा गंधा, सेसं. जहा वेइंदियाणं । [१६] त्रीन्द्रिय जीव (दस में से) आठ स्थानों का अनुभव करते हैं, यथा— इष्टानिष्ट गन्ध इत्यादि, शेष द्वन्द्रिय जीवों के समान कहना चाहिए । १७. चउरिंदिया नवट्ठाणाइं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा – इट्ठाणिट्ठा रूवा, सेसं जहा तेइंदियाणं । [१७] चतुरिन्द्रिय जीव (दस में से) नौ स्थानों का अनुभव करते हैं, यथा— इष्टानिष्ट रूप इत्यादि शेष त्रीन्द्रिय जीवों के समान कहना चाहिए। १८. पंचेन्द्रियतिरिक्खजोणिया दसट्ठाणाई पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा - इट्ठाणिट्ठा सद्दा जाव परक्कमे । [१८] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव दस स्थानों का अनुभव करते हैं, यथा— इष्टानिष्ट शब्द यावत् इष्टानिष्ट उत्थान - कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार- पराक्रम । १९. एवं मणुस्सा वि ।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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