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________________ हैं। ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-१ ५, अहवा बंधए य अबंधगा य ६, अहवा बंधगा य अबंधगे य ७, अहवा बंधगा य अबंधगा य ८, एते अट्ठ भंगा।[ दारं ५] [९. प्र.] भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धक हैं या अबन्धक हैं ? [९. उ.] गौतम ! वे ज्ञानावरणीय कर्म के अबन्धक नहीं; किन्तु एक जीव बन्धक हैं अथवा अनेक जीव बन्धक हैं। इस प्रकार (आयुष्यकर्म को छोड़ कर) अन्तराय कर्म (के बन्धक-अबन्धक) तक समझ लेना चाहिये। [प्र.] विशेषतः (वे जीव) आयुष्य कर्म के बन्धक हैं, या अबन्धक ?; यह प्रश्न है। [उ.] गौतम ! (१) उत्पल का एक जीव बन्धक है, (२) अथवा एक जीव अबन्धक है, (३) अथवा अनेक जीव बन्धक हैं, (४) या अनेक जीव अबन्धक हैं, (५) अथवा एक जीव बन्धक है, और एक अबन्धक है, (६) अथवा एक जीव बन्धक और अनेक जीव अबन्धक हैं, (७) या अनेक जीव बन्धक हैं और एक जीव अबन्धक है एवं (८) अथवा अनेक जीव बन्धक हैं और अनेक जीव अबन्धक हैं। इस प्रकार ये आठ भंग होते - [- पंचम द्वार] १०. ते णं भंते ! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं वेदगा, अवेदगा ? गोयमा ! नो अवेदगा, वेदए वा वेदगा वा। एवं जाव अंतराइयस्स। [१०. प्र.] भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीयकर्म के वेदक हैं या अवेदक हैं ? [१०. उ.] गौतम ! वे जीव अवेदक नहीं, किन्तु या तो (एक जीव हो तो) एक जीव वेदक है और (अनेक जीव हों तो), अनेक जीव वेदक हैं। इसी प्रकार अन्तरायकर्म (के वेदक-अवेदक) तक जानना चाहिए। ११. ते णं भंते ! जीवा किं सातावेदगा, असातावेदगा ? गोयमा ! सातावेदए वा, असातावेदए वा, अट्ठ भंगा। [दारं ६] [११. प्र.] भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव सातावेदक हैं, या असातावेदक हैं ? [११. उ.] गौतम ! एक जीव सातावेदक है, अथवा एक जीव असातावेदक है, इत्यादि पूर्वोक्त आठ भंग जानने चाहिए। [- छठा द्वार] १२. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिजस्स किं उदई, अणुदई ? गोयमा ! नो अणुदई, उदई वा उदइणो वा। एवं जाव अंतराइयस्स। [दारं ७] [१२. प्र.] भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीयकर्म के उदय वाले हैं या अनुदय वाले हैं ? [१२. उ.] गौतम ! वे जीव अनुदय वाले नहीं हैं, किन्तु (एक जीव हो तो) एक जीव उदय वाला है, अथवा (अनेक जीव हों तो) वे (सभी) उदय वाले हैं। इसी प्रकार अन्तरायकर्म तक समझ लेना चाहिए। [– सातवाँ द्वार]
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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