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________________ चौदहवाँ शतक : उद्देशक - २ हंता, अत्थि । [१५ प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमारं देव भी तमस्काय करते हैं ? [१५ उ. ] हाँ, गौतम ! (वे) करते हैं । १६. किंपत्तियं णं भंते ! असुरकुंमारा देवा तमुकायं पकरेंति ? गोयमा ! किड्डारतिपत्तियं वा, पडिणीयविमोहणट्टयाए वा, गुत्तिसारक्खणहेउं वा अप्पण सरीरपच्छायणट्टयाए, एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा वि देवा तमुकायं पकरेंति । [१६ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देव किस कारण से तमस्काय करते हैं ? [१६ उ.] गौतम ! क्रीडा और रति के निमित्त, शत्रु ( विरोधी, प्रत्यनीक) को विमोहित करने के लिए, गोपनीय (छिपाने योग्य) धनादि की सुरक्षा के हेतु, अथवा अपने शरीर को प्रच्छादित करने (ढँकने) के लिए, हे गौतम ! इन कारणों के असुरकुमार देव भी तमस्काय करते हैं । १७. एवं जाव वेमाणिया । सेवं भंते! सेवं भंते !त्ति जाव विहरइ । ॥ चोइसमे सए : बितिओ उद्देसओ समत्तो ॥ १४-२॥ [१७] इसी प्रकार (शेष भवनपति देव, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा ) वैमानिकों तक कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन — देवेन्द्र ईशान कृत तमस्काय प्रक्रिया — यह प्रक्रिया भी शक्रेन्द्र- वृष्टिकाय की प्रक्रिया के समान है । ३७७ चतुर्विध देवकृत तमस्काय के चार कारण - तमस्काय का अर्थ है— अन्धकार - समूह । उसे करने के चार कारण ये हैं- (१) क्रीडा एवं रति के निमित्त, (२) विरोधी को विमूढ बनाने के लिए, (३) गोपनीय द्रव्यरक्षार्थ और ( ४ ) स्वशरीर - प्रच्छादनार्थ । कठिन शब्दार्थ –तमक्कायं —— तमस्काय —— अन्धकार समूह । किड्डारतिपत्तियं— क्रीडा और रति (भोगविलास) के निमित्त । गुत्तिसारक्खणहेउं — गुप्त निधि की सुरक्षा के लिए। ॥ चौदहवाँ शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) भा. २, पृ. ६६३ २. (क) भगवती (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २२९५ (ख) भगवती. अ. वृ., पत्र ६३६ ३. वही, पत्र ६३६
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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