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________________ चौदहवाँ शतक : उद्देशक - २ ३७५ [७ प्र.] भगवन् ! कालवर्षी (काल- -समय पर बरसने वाला) मेघ (पर्जन्य) वृष्टिकाय (जलसमूह) बरसाता है ? [७ उ.] गौतम ! वह बरसाता है । ८. जाणं भंते । सक्के देविंदे देवराया वुट्ठिकार्यं काउकामे भवति से कहमियाणिं पकरेंति ? गोमा ! हे वणं से सक्के देविंदे देवराया अब्यंतरपरिसाए देवे सद्दावेति, तए णं ते अब्धंतरपरिसगा देवा सद्दाविया समाणा मज्झिमपरिसाए देवे सद्दावेंति, तए णं ते मज्झिमपरिसगा देवा सद्दाविया समाणा बाहिरपरिसाए देवे सद्दवेंति, तए णं ते बाहिरपरिसगा दवा सद्दाविया समाणा बाहिरबाहिरगे देवे सद्दावेंति, तणं ते बाहिरबाहिरगा देवा सद्दाविया समाणा आभियोगिए देवे सद्दार्वेति, तए णं ते जाव सद्दाविया समाणा वुट्ठिकाइए देवे सद्दावेंति, तए णं ते वुट्ठिकाइया देवा सद्दाविया समाणा वुट्टिकायं पकरेंति । एवं खलु गोयमा ! सक्के देविंदे देवराया वुट्ठिकार्यं पकरेति ? [८ प्र.] भगवन् ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र वृष्टि करने की इच्छा करता है, तब वह किस प्रकार वृष्टि करता है? [८ उ.] गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र वृष्टि करना चाहता है, तब (अपनी ) आभ्यन्तर परिषद् के देवों को बुलाता है । बुलाए हुए वे आभ्यन्तर परिषद् के देव मध्यम परिषद् के देवों को बुलाते हैं। तत्पश्चात् बुलाये हुए वे मध्यम परिषद् के देव, बाह्य परिषद् के देवों को बुलाते हैं, तब बुलाये हुए वे बाह्य-परिषद् के देव बाह्य-बाह्य (बाहर-बाहर—बाह्य परिषद् से बाहर) के देवों को बुलाते हैं । फिर वे बाह्य - बाह्य देव आभियोगिक देवों को बुलाते हैं। इसके पश्चात् बुलाये हुए वे आभियोगिक देव वृष्टिकायिक देवों को बुलाते हैं और तब वे बुलाये हुए वृष्टिकायिक देव वृष्टि करते हैं । इस प्रकार हे गौतम! देवेन्द्र देवराज शक्र वृष्टि करता है । ९. अस्थि णं भंते ! असुरकुमारा वि देवा वुट्टिकायं पकरेंति ? हंता, अस्ति । [९ प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमार देव भी वृष्टि करते हैं ? [९ उ.] हाँ, गौतम ! (वे भी वृष्टि) करते हैं। १०. किंपत्तियं णं भंते ! असुरकुमारा देवा वुट्टिकायं पकरेंति ? गोयमा ! जे इमे अरहंता भगवंतो एएसि णं जम्मणमहिमासु वा निक्खमणमहिमासु वा, नाप्पायमहिमासु वा परिनिव्वाणमहिमासु वा एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा देवा वुट्टिकायं पकरेंति । [१० प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देव किस प्रयोजन से वृष्टि करते हैं ? [१० उ.] गौतम ! जो ये अरिहन्त भगवन् होते हैं, उनके जन्म- महोत्सवों पर, निष्क्रमण महोत्सवों पर, ज्ञान (केवलज्ञान) की उत्पत्ति के महोत्सवों पर, परिनिर्वाण - महोत्सवों जैसे अवसरों पर हे गौतम ! असुरकुमार देव वृष्टि करते हैं । ११. एवं नागकुमारा वि । [११] इसी प्रकार नागकुमार देव भी वृष्टि करते हैं ।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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