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________________ चोद्दसमंसयं : चौदहवां शतक चौदहवें शतक के उद्देशकों के नाम १. चर १ उम्माद २ सरीरे ३ पोग्गल ४ अगणी ५ तहा किमाहारे ६। संसिट्ठमंतरे ७-८ खलु अणगारे ९ केवली चेव १० ॥१॥ [१-गाथार्थ ] [चौदहवें शतक के दस उद्देशक इस प्रकार हैं—] (१) चरम, (२) उन्माद, (३) शरीर, (४) पुद्गल, (५) अग्नि तथा (६) किमाहार, (७) संश्लिष्ट, (८) अन्तर, (९) अनगार और (१०) केवली। विवेचन—प्रस्तुत गाथा में चौदहवें शतक के १० उद्देशकों के सार्थक नामों को उल्लेख किया गया १. चरम-चरम (चर) शब्द से उपलक्षित होने से प्रथम उद्देशक का नाम 'चरम' है। २. उन्माद-उन्माद (पागलपन) के अर्थ का प्रतिपादक होने से द्वितीय उद्देशक 'उन्माद' है। ३. शरीर—शरीर शब्द से उपलक्षित होने से तृतीय उद्देशक का नाम 'शरीर' है। ४. पुद्गल-पुद्गल के विषय में कथन होने से चतुर्थ उद्देशक का नाम 'पुद्गल' है। ५. अग्नि—'अग्नि' शब्द से उपलक्षित होने के कारण पंचम उद्देशक का नाम 'अग्नि' है। ६. किमाहार—'किस दिशा का आहार वाला होता है, इस प्रकार के प्रश्न से युक्त होने के कारण छठे उद्देशक का नाम 'किमाहार' है। ७. संश्लिष्ट—'चिरसंसिट्ठोऽसि गोयमा !,' इस पद में आए हुए 'संश्लिष्ट' शब्द से युक्त होने से सप्तम उद्देशक का नाम 'संश्लिष्ट' है। ८. अन्तर-नरक-पृथ्वियों के अन्तर का प्रतिपादक होने से आठवें उद्देशक का नाम 'अन्तर' है। ९. अनगार—इसका सर्वप्रथम पद 'अनगार' है, इसलिए नौंवें उद्देशक का नाम 'अनगार' है और १०. केवली—उद्देशक के प्रारम्भ में केवली' पद होने से इस उद्देशक का नाम 'केवली' है। ००० १. भगवती अ. वृत्ति, पत्र ६३०
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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