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________________ तेरहवां शतक : उद्देशक-७ ३३५ भेदन नहीं होता, क्योंकि तब तक शब्द भाषापरिणाम को छोड़ देते हैं। अत: बोले जाने के पश्चात् वक्ता का उत्कृष्ट प्रयत्न न होने से भाषा का भेदन नहीं हो पाता। भाषा का भेदन तभी तक होता है जब तक शब्द-परिणाम की अवस्था रहती है। वहीं तक भाषा में भाष्यमाणता (बोली जाती हुई भाषा का भाषापन) समझना चाहिए। आशय यह है कि जब कोई वक्ता मन्द प्रयत्न वाला होता है तो वह अपने मुख से अभिन्न शब्दद्रव्यों को निकालता है। वे निकले हुए शब्दद्रव्य असंख्येय एवं अतिस्थूल होने के बाद उनका भेदन होता है। भिन्न होते हुए वे शब्दद्रव्य संख्येय योजन जाकर शब्दपरिणाम का त्याग कर देते हैं। यदि कोई वक्ता महाप्रयत्न वाला होता है तो आदान-विसर्ग रूप (ग्रहण करने और छोड़ने रूप) दोनों प्रयत्नों से भेदन करके ही शब्दद्रव्यों को त्यागता है। त्यागे हुए वे शब्दद्रव्य सूक्ष्म एवं बहुत होने से अनन्तगुणवृद्धि से बढ़ते हुए छहों दिशाओं में लोक के अन्त तक जा पहुँचते हैं। अत: यह सिद्ध हुआ कि बोली जा रही भाषा का ही भेदन होता है। मनः आत्मा मन नहीं, जीव का है, मनन करते समय ही मन तथा भेदन १०. आया भंते ! मणे, अन्ने मणे ? गोयमा ! नो आया मणे, अन्ने मणे। [१० प्र.] भगवन् ! मन आत्मा है, अथवा आत्मा से भिन्न ? [१० उ.] गौतम ! आत्मा मन नहीं है। मन (आत्मा) अन्य (भिन्न) है; इत्यादि। ११. जहा भासा तहा मणे वि जाव नो अजीवाणं मणे। [११] जिस प्रकार भाषा के विषय में (विविध प्रश्नोत्तर कहे गए ) उसी प्रकार मन के विषय में भी यावत्-अजीवों के मन नहीं होता; (यहाँ तक) कहना चाहिए। १२. पुव्विं भंते ! मणे, मणिजमाणे मणे ?. एवं जहेव भासा। [१२ प्र.] भगवन् ! (मनन से) पूर्व मन कहलाता है, या मनन के समय मन कहलाता है, अथवा मनन का समय बीत जाने पर मन कहलाता है ? [१२ उ.] गौतम ! जिस प्रकार भाषा के सम्बन्ध में कहा, उसी प्रकार (मन के विषय में भी कहना चाहिए।) १३. पुव्विं भंते ! मणे भिजइ, मणिज्जमाणे मणे भिज्जइ, मणसमयवीतिक्ते मणे भिज्जइ ? एवं जहेव भासा। [१३ प्र.] भगवन् ! (मनन से) पूर्व मन का भेदन (विदलन) होता है, अथवा मनन करते हुए मन का १. (क) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २२४१ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६२२
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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