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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र को भीतर और बाहर से शीघ्र ही स्वच्छ करवाओ, यावत् कौटुम्बिक पुरुषों ने नगर के भीतर और बाहर से सफाई करवा कर यावत् उनके आदेश-पालन का निवेदन किया।
२५. तए णं उदायणे राया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, स० २ एवं वयासी—खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! केसिस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं एवं रायाभिसेओ जहा सिवभहस्स (स० ११ उ० ९ सु० ७-९) तहेव भाणियव्वो जाव परमायुं पालयाहि इट्ठजणसंपरिवुडे सिंधुसोवीरपामोक्खाणं सोलसण्हं जणवदाणं, वीतिभयपामोक्खाणं०, महसेणप्पा०, अन्नेसिं च बहूणं राईसर-तलवर० जाव कारेमाणे पालेमाणे विहराहि, त्ति कट्ट जयजयसदं पउंजंति।
[२५] तदनन्तर उदायन राजा ने दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उन्हें इस प्रकार की आज्ञा दी— 'देवानुप्रियो ! केशी कुमार के महार्थक (सार्थक), महामूल्य, महान् जनों के योग्य यावत् राज्याभिषेक की तैयारी करो।' इसका समग्र वर्णन (शतक ११, उ. ९, सूत्र ७ से ९ में उक्त) शिवभद्र कुमार के राज्याभिषेक के समान यावत्-परम दीर्घायु हो, इष्टजनों से परिवृत्त होकर सिन्धुसौवीर-प्रमुख सोलह जनपदों, वीतिभय-प्रमुख तीन सौ तिरेसठ नगरों और आकरों तथा मुकुटबद्ध महासेनप्रमुख दस राजाओं एवं अन्य अनेक राजाओं, श्रेष्ठियों, कोतवाल (तलवर) आदि पर आधिपत्य करते तथा राज्य का परिपालन करते हुए विचरो'; यों (आशीर्वचन) कह कर जय-जय शब्द का प्रयोग किया।
२३. तए णं से केसी कुमारे राया जाते महया जाव विहरति।
[२३] इसके पश्चात् केशी कुमार राजा बना। वह महाहिमवान् पर्वत के समान इत्यादि वर्णन युक्त यावत् विचरण करता है।
विवेचन-उदायन नृप का राज्य सौंपने के विषय में चिन्तन — भगवान् महावीर के प्रवचन-श्रवण के बाद उदायन नरेश का पहले विचार हुआ कि अपने पुत्र अभीचि कुमार का राज्याभिषेक करके मैं प्रव्रजित हो जाऊँ, किन्तु बाद में उन्होंने अन्तर्मन्थन किया तो उन्हें लगा कि अभीचि कुमार को यदि में राज्य सौंप दूंगा तो वह राज्य, राष्ट्र, जनपद आदि में तथा मानवीय कामभोगों में मूर्च्छित, आसक्त एवं लोलुप हो जाएगा, फलस्वरूप वह अनादि अनन्त चातुर्गतिक संसारारण्य में परिभ्रमण करता रहेगा। यह उसके लिए अकल्याणकर होगा। अत: उसे राज्य न सौंप कर अपने भानजे केशी कुमार को सौंप दूं।' १
कठिन शब्दों का भावार्थ-मुच्छिए-मूर्च्छित-आसक्त।गिद्धे-गृद्ध-लुब्ध । गढिए—ग्रथित=बद्ध। अज्झोववण्णे—अत्यधिक तल्लीन ।अणादीयं—अनादि-प्रवाहरूप से आदिरहित, अणवदग्गं—अनवदनअनन्त- प्रवाहरूप से अन्तरहित । दीहमद्धं—दीर्घ मार्ग वाले। सेयं श्रेयस्कर, कल्याणकर । भाइणेजंभानजे को। परमाउं पालयाहि—दीर्घायु होओ। सदं पउंजंति—शब्द का प्रयोग करता है।
भानजे को राज्य सौंपने के पीछे रहस्य-उदायन राजा ने अभीचिकुमार के विषय में जिस राज्य को
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) २. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २२३८