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________________ तेरहवां शतक : उद्देशक-४ ३१५ अधोलोक-तिर्यक्लोक-उर्ध्वलोक के अल्पबहुत्व का निरूपण ७०.एतस्स णं भंते ! अहेलोगस्स तिरियलोगस्स उड्ढलोगस्स य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे तिरियलोए, उड्डल्लोए असंखेजगुणे, अहेलोए विसेसाहिए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति०। [७० प्र.] भगवन् ! अधोलोक, तिर्यक्लोक और उर्ध्वलोक में, कौन-सा लोक किस लोक से छोटा (अल्प) यावत् बहुत (अधिक या बड़ा), सम अथवा विशेषाधिक है ? [७० उ.] गौतम ! सबसे थोड़ा (छोटा) तिर्यक्लोक है। (उससे) उर्ध्वलोक असंख्यातगुणा है और उससे अधोलोक विशेषाधिक (विशेष बड़ा) है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरण करते हैं। विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में तीनों लोकों की न्यूनाधिकता (छोटे-बड़े की तरतमता) बताई गई है। कौन छोटा, कौन बड़ा?—तिर्यग्लोक सबसे छोटा इसलिए है कि वह केवल १८०० योजन लम्बा है, जबकि उर्ध्वलोक की अवगाहना ७ रज्जू में कुछ कम है, इसलिए वह तिर्यग्लोक से असंख्यातगुणा बड़ा है और अधोलोक सबसे अधिक बड़ा (विशेषाधिक) इसलिए है कि उसकी अवगाहना कुछ अधिक ७ रज्जू परिमाण है। इसलिए वह ऊर्ध्वलोक से विशेषाधिक है। ॥ तेरहवां शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त॥ ००० १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६१६ (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ४, पृ. २२२५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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