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________________ ३०६ [५८-३] आकाशास्तिकाय के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए । [४] सेसं जहेव दोन्हं । व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [५८-४] शेष (जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय इन ) तीनों के विषय के, जिस प्रकार दो पुद्गलप्रदेशों के विषय में कहा था, उसी प्रकार तीन पुद्गलप्रदेशों के विषय में भी कहना चाहिए। ५१. एवं एक्केक्को वड्ढियव्वो पएसो आदिल्लएहिं तीहिं अस्थिकाएहिं । सेसं जहेव दोण्हं जाव दसहं सिय एक्को, सिय दोन्नि, सिय तिन्नि जाव सिय दस । संखेज्जाणं सिय एक्को, सिय दोन्नि, जाव सिय दस, सिय संखेज्जा । असंखेजाणं सिय एक्को, जाव सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा । जहा असंखेज्जा एवं अनंता वि । [ ५९ ] आदि के तीन अस्तिकायों के साथ एक-एक प्रदेश बढ़ाना चाहिए । शेष के विषय में जिस प्रकार दो पुद्गल प्रदेशों के विषय में कहा था, उसी प्रकार यावत् दस प्रदेशों तक कहना चाहिए । अर्थात् जहाँ पुद्गलास्तिकाय के दस प्रदेश अवगाढ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय के कदाचित् एक दो, तीन यावत् कदाचित् दस प्रदेश अवगाढ होते हैं । जहाँ पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय के कदाचित् एक, दो, तीन, यावत् कदाचित् दस प्रदेश यावत् कदाचित् संख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं । जहाँ पुद्गलास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय के कदाचित् एक प्रदेश यावत् कदाचित् संख्यात प्रदेश और कदाचित् असंख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं । जिस प्रकार पुद्गलास्तिकाय के विषय में कहा है, उसी प्रकार अनन्त प्रदेशों के विषय में भी कहना चाहिए । अर्थात् — जहाँ पुद्गलास्तिकाय के अनन्त प्रदेश अवगाढ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय के कदाचित् एक प्रदेश यावत् संख्यात प्रदेश और असंख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं । ६०. [ १ ] जत्थ णं भंते ! एगे अद्धासमये ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मऽत्थि० ? एक्को । [६०-१ प्र.] भगवन् ! जहाँ एक अद्धासमय अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [६०-१ उ.] (गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का) एक प्रदेश अवगाढ होता है । [२] केवतिया अहम्मत्थि० ? एक्को । [६०-२ प्र.] ( भगवन् ! वहाँ ) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [६०-२ उ.] (वहाँ उसका ) एक प्रदेश अवगाढ होता है ।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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