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________________ तेरहवाँ शतक : उद्देशक-४ [४८- १ उ.] ( गौतम ! वह) सात प्रदेशों से ( स्पृष्ट होता है ।) [ २ ] केवतिएहिं अहम्मऽत्थि० ? एवं चेव । [४८-२ प्र.] (भगवन् ! वह) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से ( स्पृष्ट होता है ? ) [४८- २ उ.] पूर्ववत् ( धर्मास्तिकाय के समान ) जानना चाहिए। [ ३ ] एवं आगासऽत्थिकाएहि वि । [४८-३] इसी प्रकार आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से (अद्धाकाल के एक समय की स्पर्शना के विषय में) भी ( कहना चाहिए ।) [४] केवतिएहिं जीव० ? अणतेहिं । २९७ [४८-४ प्र.] (भगवन् ! अद्धाकालिक एक समय) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [ ४८ - ४ उ. ] ( गौतम ! वह) अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । [५] एवं जाव अद्धासमएहिं । [४८-५] इसी प्रकार यावत् अनन्त अद्धासमयों से स्पृष्ट होता है । ४९. [ १ ] धम्मऽत्थिकाए णं भंते! केवतिएहिं धम्मऽत्थिकायपएसेहिं डे ? नथ एक्केण वि । [४९-१ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय द्रव्य, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [४९ - १ उ.] गौतम ! वह एक भी प्रदेश से स्पृष्ट नहीं होता । [२] केवतिएहिं अधम्मऽत्थिकायप्पएसहिं ? असंखेज्जेहिं । [४९-२ प्र.] (भगवन् ! वह) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [४९ - २ उ. ] (गौतम ! ) वह असंख्येय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [ ३ ] केवतिएहिं आगास त्थिकायप० ? असंखेज्जेहिं । [४९-३ प्र.] (भगवन् ! वह) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [४९-३ उ.] (गौतम ! वह) असंख्येय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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