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________________ तेरहवाँ शतक : उद्देशक - ४ जह० बावीसाए, उक्को० बावण्णाए । [४३ प्र. ] ( भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के दस प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं ?) [४३ उ.] ( गौतम ! वे ) जघन्य पद में बाईस और उत्कृष्ट पद में बावन प्रदेशों से ( स्पृष्ट होते हैं ? ) ४४. आगासऽत्थिकायस्स सव्वत्थ उक्कोसगं भाणियव्वं । [४४] आकाशास्तिकाय के लिए सर्वत्र उत्कृष्ट पद ही कहना चाहिए । ४५ [ १ ] संखेज्जा भंते! पोग्गलऽत्थिकायपएसा केवतिएहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुट्ठा ? जहन्नपदे तेणेव संखेज्जएणं दुगुणेणं दुरूवाहिएणं, उक्कोसपर तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिणं । [४५-१ प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [ ४५ - १ उ.] गौतम ! जघन्य पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को दुगुने करके उनमें दो रूप और अधिक जोड़ें और उत्कृष्ट पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पांच गुणे करके उनमें दो रूप और अधिक जोड़ें, उतने प्रदेशों से वे स्पृष्ट होते हैं । [२] केवतिएहिं अहम्मऽत्थिकाएहिं० ? एवं चेव । २९५ [४५-२ प्र.] ( भगवन् ! ) वे अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [४५-२] (गौतम! ) पूर्ववत् ( धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए।) [ ३ ] केवतिएहिं आगासऽत्थिकाय० ? तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं । [४५-३ प्र.] भगवन् ! आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [४५-३ उ.] (गौतम! ) उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पाँच गुणे करके उनमें दो रूप और जोड़ें, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। [४] केवतिएहिं जीवत्थिकाय० ? अणतेहि । [४५-४ प्र.] (भगवन् ! ) वे जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [ ४५-४ उ. ] (गौतम ! वे) अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं । [५] केवतिएहिं पोग्गलत्थिकाय० ?
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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