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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३७ उ.] (गौतम ! वे ) जघन्य पद में दस प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बाईस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। ३८. पंच पोग्गल०? जह० वारसहिं, उक्कोस० सत्तावीसाए। [३८ प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के पांच प्रदेश (धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते
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हैं ?)
[३८ उ.] (गौतम ! वे ) जघन्य पद में बारहं प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सत्ताईस प्रदेशों से स्पृष्ट होते
३९. छ पोग्गल०? जह० चोद्दसहिं, उक्को० बत्तीसाए। [३९ प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के छह प्रदेश (धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट होते
हैं ?)
[३९ उ.] (गौतम ! वे) जघन्यपद में चौदह और उत्कृष्ट पद में बत्तीस प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं।) ४०. सत्त पो०? जहन्नेणं सोलसहिं, उक्को० सत्ततीसाए।
[४० प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के सात प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं ?)
[४० उ.] (गौतम ! वे) जघन्य पद में सोलह और उत्कृष्ट पद में सैंतीस प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं।) ४१. अट्ठ पो० ? जह० अट्ठारसहिं, उक्कोसेणं बायालीसाए। [४१ प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के आठ प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [४१ उ.] (गौतम ! वे ) जघन्य पद में अठारह और उत्कृष्ट पद में बयालीस प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं।) ४२. नव पो०? जह० वीसाए, उक्को० सीयालीसाए। [४२ प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के नौ प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [४२ उ.] (गौतम ! वे ) जघन्य पद में दस और उत्कृष्ट पद में छियालीस प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं।) ४३. दस०?