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________________ ७७० तृतीय उद्देशक : बारह द्वारों के माध्यम से पृथ्वीकायिकजीव से संबंधित प्ररूपणा ७७०, बारह द्वारों के माध्यम से अप्-तेजो-वायु-वनस्पतिकायिकों में प्ररूपणा ७७४, एकेन्द्रिय जीवों की जघन्य-उत्कृष्ट अवगाहना की अपेक्षा अल्पबहुत्व ७७६, एकेन्द्रिय जीवों में सूक्ष्मसूक्ष्मतरनिरूपण ७७८, एकेन्द्रिय जीवों में बादर-बादरतरनिरूपण ७७९, पृथ्वीकाय की महाकायता का निरूपण ७८०, पृथ्वीशरीर की महती शरीरावगाहना ७८१, एकेन्द्रिय जीवों की अनिष्टतर वेदनानुभूति का सदृष्टान्त निरूपण ७८३. चतुर्थ उद्देशक : महाश्रव। ७८५ नारकों में महास्रवादि पदों की प्ररूपणा ७८५, असुरकुमारों से लेकर वैमानिकों तक ‘महास्रवादि चारों पदों की प्ररूपणा ७८८. पंचम उद्देशक : चरम (परमवेदनादि) ७९० चरम और अचरम आधार पर चौवीस दण्डकों में महाकर्मत्व-अल्पकर्मत्व आदि का निरूपण ७९०, वेदना : दो प्रकार तथा उसका चौवीस दण्डकों में निरूपण ७९२. छठा उद्देशक : द्वीप (समुद्र-वक्तव्यता) ७९४ - जीवाभिगमसूत्रनिर्दिष्ट द्वीप-समुद्र सम्बन्धी वक्तव्यता ७९४. सप्तम उद्देशक : भवन (विमानावास सम्बन्धी) ७९६ चतुर्विध देवों के भवन-नगर-विमानावास-संख्यादि निरूपण ७९६. अष्टम उद्देशक : निर्वृत्ति ७९९ जीवनिर्वृत्ति के भेदाभेद का निरूपण ७९९, कर्म, शरीर इन्द्रिय आदि १८ बोलों की निर्वृत्ति के भेदसहित चौवीस दण्डकों में निरूपण ८००. नौवाँ उद्देशक : करण ८०८ द्रव्यादि पंचविध करण और नैरयिकादि में उनकी प्ररूपणा ८०८, शरीरादि करणों के भेद और चौवीस दण्डकों में उनकी प्ररूपणा ८०९, प्राणातिपातकरण : पांच भेद, चौवीस दण्डकों में निरूपण ८१०, पुद्गलकरण : भेद-प्रभेद-निरूपण ८११. दसवाँ उद्देशक : वाणव्यन्तरदेव वाणव्यन्तरों में सामाहारादि-द्वार-निरूपण ८१२ ८१२
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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