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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २८२ सहित) है और अलोक - आश्रयी वह सादि अनन्त हैं। लोक- आश्रयी वह मुरज (मृदंग) के आकार की है, और अलोक - आश्रयी वह ऊर्ध्वशकटाकार (शकटोर्द्धि) की है। १७. अग्गेयी णं भंते ! दिसा किमादीया किंपवहा कतिपएसादीया कतिपएसवित्थिण्णा कतिपदेसिया किंपज्जवसिया किंसंठिया पन्नत्ता ? गोयमा ! अग्गेयी णं दिसा रुयगादीया रुयगप्पवहा एगपएसादीया एगपएसवित्थिण्णा अणुत्तरा, लोगं पडुच्च असंखेज्जपएसिया, अलोगं पडुच्च अणंतपएसिया लोगं पडुच्च सादीया सपज्जवसिया, आलोगं पडुच्च सादीया अपज्जवसिया, छिन्नमुत्तावलिसंठिया पन्नत्ता । [२७ प्र.] भगवन् ! आग्नेयी दिशा के आदि में क्या हैं ? उसका उद्गम (प्रवह) कहाँ से है ? उसके आदि में कितने प्रदेश हैं ? वह कितने प्रदेशों के विस्तार वाली है ? वह कितने प्रदेशों वाली है ? उसका अन्त कहाँ होता है ? और उसका संस्थान (आकार) कैसा है ? T [ २७ उ.] गौतम ! आग्नेयी दिशा के आदि में रुचकप्रदेश हैं । उसका उद्गम (प्रवह) भी रुचकप्रदेश से है। उसके आदि में एक प्रदेश है। वह अन्त तक एक-एक प्रदेश के विस्तार वाली है । वह अनुत्तर (उत्तरोत्तरवृद्धि से रहित ) है । वह लोक की अपेक्षा असंख्यातप्रदेश वाली है और अलोक की अपेक्षा अनन्तप्रदेश वाली है । वह लोक - आश्रयी सादि - सान्त है और अलोक - आश्रयी सादि-अनन्त है। उसका आकार ( संस्थान) टूटी हुई मुक्तावली (मोतियों की माला) के समान है। १८. जमा जहा इंदा | [१८] याम्या का स्वरूप ऐन्द्री के समान समझना चाहिए। १९. नेरती जहा अग्गेयी । [१९] नैऋती का स्वरूप आग्नेयी के समान मानना चाहिए। २०. एवं जहा इंदा तहा दिसाओ चत्तारि वि । जहा अग्गेयी तहा चत्तारि वि विदिसाओ । [२०] (संक्षेप में) ऐन्द्री दिशा के समान चारों दिशाओं का तथा आग्नेयी दिशा के समान चारों विदिशाओं का स्वरूप जानना चाहिए । २१. विमला णं भंते! दिसा किमादीया०, पुच्छा । गोयमा ! विमला णं दिसा रुयगादीया रुयगप्पवहा चउप्पएसादीया, दुपदेसवित्थिण्णा अणुत्तरा लोगं पडुच्च० सेसं जहा अग्गेयीए, नवरं रुयगसंठिया पन्नत्ता । [ २१ प्र.] भगवन् ! विमला (ऊर्ध्व) दिशा के आदि में क्या है ? इत्यादि आग्नेयी के समान प्रश्न । [२१ उ.] गौतम ! विमल दिशा के आदि में रुचक प्रदेश हैं । वह रुचकप्रदेशों से निकली है। उसके आदि में चार प्रदेश हैं । वह अन्त तक दो प्रदेशों के विस्तार वाली है । वह अनुत्तर (उत्तरोत्तर वृद्धिरहित ) है | लोक
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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