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तेरहवां शतक : उद्देशक-४
विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में चौथे निरयान्तद्वार के सन्दर्भ में सातों नरकों के निकटवर्ती पृथ्वीकायादि जीवों के महाकर्मी आदि होने का अतिदेशपूर्वक कथन किया गया है। लोक-त्रिलोक का आयाम-मध्यस्थान निरूपण : पंचम लोकमध्यद्वार
१२. कहि णं भंते अहेलोगस्स आयाममझे पन्नत्ते ?
गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरस्स असंखेजतिभागं ओगाहित्ता, एत्थ णं अहेलोगस्स आयाममझे पन्नत्ते।
[१२ प्र.] भगवन् ! लोक के आयाम (लम्बाई) का मध्य (मध्यभाग) कहाँ कहा गया है ?
[१२ उ.] गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के आकाशखण्ड (अवकाशान्तर) के असंख्यातवें भाग का अवगाहन (उल्लंघन) करने पर लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहा गया है।
१३. कहि णं भंते ! अहेलोगस्स आयाममझे पन्नत्ते ?
गोयमा ! चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए ओवासंतरस्स सातिरेगं अद्धं ओगाहित्ता, एत्थ णं अहेलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते।
[१३ प्र.] भगवन् ! अधोलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ कहा गया है ?
[१३ उ.] गौतम ! चौथी पंकप्रभापृथ्वी के आकाशखण्ड (अवकाशान्तर) के कुछ अधिक अर्द्धभाग का उल्लंघन करने के बाद, अधोलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहा गया है।
१४. कहि णं भंते ! उड्ढलोगस्स आयाममझे पन्नत्ते ?
गोयमा ! उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेट्ठि बंभलोए कप्पे रिटे विमाणपत्थडे, एत्थ णं उड्ढलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते। __ [१४ प्र.] भगवन् ! ऊर्ध्वलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ बताया गया है ?
[१४ उ.] गौतम ! सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोकों के ऊपर और ब्रह्मलोक कल्प के नीचे एवं रिष्ट नामक विमानप्रस्तट (पाथड़े) में ऊर्ध्वलोक की लम्बाई का मध्यभाग बताया गया है।
१५. कहि णं भंते ! तिरियलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते ?
गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स बहुमज्झदेसभाए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्लेसु, खुड्डगपयरेसु, एत्थ णं तिरिक्लोगमज्झे अट्ठपएसिए रुयए पन्नत्ते, जओ णं इमाओ दस दिसाओ पवहंति, तं जहा–पुरत्थिमा पुरथिमदाहिणा एवं जहा दसमसते [ स० १० उ० १ सु०६७] जाव नामधेज त्ति।
[१५ प्र.] भगवन! तिर्यक्लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ बताया गया है?