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________________ बारहवाँ शतक : उद्देशक-१० २३७ में नहीं बनता है। क्योंकि उसके केवल दो ही अंश हैं। २९. [१] आया भंते ! तिपएसिए खंधे, अन्ने तिपएसिए खंधे ? गोयमा ! तिपएसिए खंधे सिए आया १, सिय नो आया २, सिय अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य ३, सि आया य नो आया य ४, सिय आया य नो आयाओ य ५, सिय आयाओ य नो आया य ६, सिय आया य अवत्तव्बं—आया ति य नो आया ति य ७, सिय आया य अवत्तव्वाइं— आयाओ य नो आयाओ य ८, सिय आयाओ य अवत्तव्वं आया ति य नो आया ति य ९, सिय नो आया य अवत्तव्वं-आया ति य नो आया ति य १०, सिय नो आया य अवत्तव्वाइं—आयाओ य नो आयाओ य ११, सिय नो आयाओ य अवत्तव्वं आया ति य नो आया ति य १२, सिय आया य नो आया य अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य १३। [२९-१ प्र.] भगवन् ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा (सद्प) अथवा उससे अन्य (असद्रूप) है ? [२९-१ उ.] गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध १- कथंचित् सद्प (आत्मा) है।२-कथंचित् असद्प (नोआत्मा) है। ३- सद्-असद्-उभयरूप होने से कथंचित् अवक्तव्य है। ४-कथंचित् आत्मा (सद्प ) और कथंचित् नो आत्मा (असद्रूप) है। ५-कथंचित् सद्प (आत्मा) और अनेक असद्रूप (नो आत्माएँ) हैं। ६-कथंचित् अनेक असद्रूप (आत्माएँ) तथा असद्प (नो आत्मा) है।७-कथंचित् सद्रूप (आत्मा) और सद्-असद्-उभयरूप होने से अवक्तव्य है। ८-कथंचित् आत्मा (सद्प) तथा अनेक सद्-असद्प (आत्माएँ तथा नो आत्माएँ) होने से अवक्तव्य है। ९-कथंचित् आत्माएँ (अनेक असद्रूप) तथा आत्मा-नो आत्मा (सद्-असद्) उभयरूप से—अवक्तव्य है। १०-कथंचित् नो आत्मा (असद्प) तथा आत्मा-नो-आत्मा (सद्-असद्) उभयरूप होने से अवक्तव्य है । ११-कथंचित् नो आत्मा (असद्प), तथा आत्माएँ-नो आत्माएँ (अनेक सद्-असद्रूप)-उभयरूप होने से अवक्तव्य हैं । १२-कथंचित् नो आत्माएँ (अनेक असद्रूप) तथा आत्माएँ-नो-आत्माएँ (अनेक सद्-असद्प) उभयरूप होने से-अवक्तव्य हैं,.और १३-कथंचित् आत्मा (सद्रूप), नो-आत्मा (असद्रूप) और आत्मा-नो-आत्मा (सद्-असद्) उभयरूप होने से अवक्तव्य है। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति 'तिपएसिए खंधे सिय आया य० एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव सिय आया य नो आया य अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य? गोयमा ! अप्पणो आदिढे आया १; परस्स आदिढे नो आया २; तदुभयस्स आदिढे अवत्तव्वं आया ति य नो आया ति य ३; देसे आदिढे सब्भावपजवे, देसे आदिढे असब्भावपजवे तिपदेसिए खंधे आया य नो आया य ४; देसे आदिढे सब्भावपजवे, देसा आइट्ठा असब्भावपजवा तिपएसिए खंधे आया य नो आयाओ य ५; देसा आदिढे सब्भावपजवा, देसे आदिढे असब्भावपज्जवे तिपएसिए खंधे आयाओ य नो आया य ६; देसे आदितु सब्भावपज्जवे, देसे आदिढे तदुभयपजवे तिपएसिए खंधे १. भगवतीसूत्र, अ. वृत्ति, पत्र ५९५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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