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________________ २३५ बारहवाँ शतक : उद्देशक-१० असद अनात्म (असद) रूप इन दोनों द्वारा एक साथ कहना अशक्य होने से अवक्तव्य है। इस दृष्टि से यहाँ प्रत्येक पृथ्वी के सद्रूप, असद्प और अवक्तव्य, ये तीन भंग होते हैं।' आदितुआदिष्ट : भावार्थ—(उसकी अपेक्षा से) कथन किये जाने पर। २७. आया भंते ! परमाणुपोग्गले, अन्ने परमाणुपोग्गले ? एवं जहा सोहम्मे तहा परमाणुपोग्गले वि भाणियव्वे। ___ [२७ प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल आत्मरूप (सद्प) अथवा वह (परमाणु-पुद्गल) अन्य (अनात्म-असद्रूप) है ? [२७ उ.] (गौतम !) जिस प्रकार सौधर्मकल्प (देवलोक) के विषय में कहा है, उसी प्रकार परमाणुपुद्गल के विषय में कहना चाहिए। २८.[१] आया भंते ! दुपदेसिए खंधे, अन्ने दुपएसिए खंधे ? गोयमा ! दुपएसिए खंधे सिय आया १, सिया नो आया २, सिय अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य ३, सिय आया य नो आया य ४, सिय आया य अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य५, सिय नो आया य अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य ६। [२८-१ प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध आत्मरूप (सद्रूप) है, (अथवा) वह अन्य (असद्रूप) । [२८-१ उ.] गौतम ! १-द्विप्रदेशी स्कन्ध कथंचित् सद्प है, २-कथंचित् असद्रूप है, और ३-सद्असद्प होने से कथंचित् अवक्तव्य है।४-कथंचित् सद्प है और कथंचित् असद्प है, ५-कथंचित् स्वरूप है और सद्-असद्-उभयरूप होने से अवक्तव्य है और ६-कथंचित् असद्प है और सद्-असद्-उभयरूप होने से अवक्तव्य है। [२] से केणद्वेणं भंते ! एवं० तं चेव जाव नो आया य, अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य? गोयमा ! अप्पणो आदिढे आया १; परस्स आदिढे नो आया २; तदुभयस्स आदिढे अवत्तव्वंदुपएसिए खंधे आया ति य, नो आया ति य ३; देसे आदितु सब्भावपजवे, देसे आदिढे असब्भावपजवे दुपदेसिए खंधे आया य नो आया य ४: देसे आदितु सब्भावपजवे, देसे आदिढे तदुभयपजवे दुपएसिए खंधे आया , अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य ५; देसे आदिढे असब्भावपज्जवे, देसे आदिद्वे १. भगवती. अ. वृत्ति. पत्र ५९४ २. (क) वही, पत्र ५९४ (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ४, पृ. २११८
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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