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________________ बारहवां शतक : उद्देशक-१० २२५ [२-३ उ.] गौतम ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके उपयोगात्मा अवश्य होती है और जिसके उपयोगात्मा होती है उसके द्रव्यात्मा अवश्यमेव होती है। जिसके द्रव्यात्मा होती है उसके ज्ञानात्मा भजना (वैकल्पिक रूप) से होती है (अर्थात् कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं भी होती।) और जिसके ज्ञानात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा अवश्य होती है। जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके दशर्नात्मा अवश्यमेव होती है तथा जिसके दर्शनात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा भी अवश्य होती है। जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके चरित्रात्मा भजना से होती है, किन्तु जिसके चरित्रात्मा होती है, उसे द्रव्यात्मा अवश्य होती है। जिसे द्रव्यात्मा होती है, उसके वीर्य-आत्मा भजना से होती है, किन्तु जिसके वीर्य-आत्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा अवश्यमेव होती है। ३. [१] जस्स णं भंते ! कसायाया तस्स जोगाया० पुच्छा। गोयमा ! जस्स कसाया या तस्स जोगाया नियम अत्थि, जस्स पुण जोगाया तस्स कसायाया सिय अस्थि सिय नत्थि। [३-१ प्र.] भगवन् ! जिसके कषायात्मा होती है, क्या उसके योगात्मा होती है ? (इत्यादि) प्रश्न हैं। - [३-१ उ.] गौतम ! जिसके कषायात्मा होती है, उसके योग-आत्मा अवश्य होती है, किन्तु जिसके योग-आत्मा होती है, उसके कषायात्मा कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती। [२] एवं उवयोगायाए वि समं कसायाता नेयव्वा। [३-२ प्र.] इसी प्रकार उपयोगात्मा के साथ भी कषायात्मा का परस्पर सम्बन्ध समझ लेना चाहिए। [३] कसायाया य नाणाया य परोप्परं दो वि भइयव्वाओ। [३-३ प्र.] कषायात्मा और ज्ञानात्मा इन दोनों का परस्पर सम्बन्ध भजना से (कादाचित्क) कहना चाहिए। [४] जहा कसायाया व उवयोगाया य तहा कसायाया य दंसणाया य। [३-४ प्र.] कषायात्मा और उपयोगात्मा (के परस्पर सम्बन्ध) के समान ही कषायात्मा और दर्शनात्मा (के पारस्परिक सम्बन्ध) का कथन करना चाहिए। [५] कसायाया य चरित्ताया य दो वि परोप्परं भइयव्वाओ। [३-५] कषायात्मा और चारित्रात्मा का (परस्पर सम्बन्ध) भजना से कहना चाहिए। [६] जहा कसायाया य जोगाया य तहा कसायाया य वीरियाया य भाणियव्वाओ। [३-६] कषायात्मा और योगात्मा के परस्पर सम्बन्ध के समान ही कषायात्मा और वीर्यात्मा के सम्बन्ध का कथन करना चाहिए। ४. एवं जहा कसायायाए वत्तव्वया भणिया तहा जोगायाए वि उवरिमाहिं समं भाणियव्वा।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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