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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (६) दर्शन - आत्मा- - सामान्य - अवबोध रूप दर्शन से विशिष्ट आत्मा दर्शनात्मा है । दर्शनात्मा सभी जीवों के होती है। चारित्रात्मा कहते हैं, जो विरति वाले साधु ( ८ ) वीर्यात्मा—उत्थानादिरूप कारणों से युक्त सकरण वीर्य विशिष्ट आत्मा को वीर्यात्मा कहते हैं, जो सभी संसारी जीवों के होती है । सिद्धों में सकरण वीर्य न होने से उनमें वीर्यात्मा नहीं मानी जाती है। द्रव्यात्मा आदि आठों का परस्पर सहभाव - असंहभाव-निरूपण २२४ # (७) चारित्रात्मा — चारित्रविशिष्ट गुण से युक्त आत्मा श्रावकों के होती है। २ [ १ ] जस्स णं भंते ! दवियाया तस्स कसायाया, जस्स कसायाया तस्स दवियाया ? गोयमा ! जस्स दवियाया तस्स कसायाया सिय अत्थि सिय नत्थि, जस्स पुण कसायाया तस्स दवियाया नियमं अत्थि । [२-१ प्र.] भगवन् ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, क्या उसके कषायात्मा होती है और जिसके कषायात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा होती है ? [२-१ उ.] गौतम ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके कषायात्मा कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं भी होती। किन्तु जिसके कषायात्मा होती है, उसक द्रव्यात्मा अवश्य होती है। [२] जस्स णं भंते ! दवियाया तस्स जोगाया० ? एवं जहा दवियाया य कसायाया य भणिया तहा दवियाया य जोगाया य भाणियव्वा । [२-२ प्र.] भगवन् ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, क्या उसके योग- आत्मा होती है और जिसके योगआत्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा होती ? [२-२ उ.] गौतम ! जिस प्रकार द्रव्यात्मा और कषायात्मा का सम्बन्ध कहा है, उसी प्रकार द्रव्यात्मा और योग- आत्मा का सम्बन्ध कहना चाहिए । [ ३ ] जस्स णं भंते ! दवियाया तस्स उवयोगाया० ? एवं सव्वत्थ पुच्छा भाणियव्वा । जस्स दवियाया तस्स उवयोगाया नियमं अत्थि, जस्स वि उवयोगाया तस्स वि दवियाया नियमं अत्थि । जस्स दवियाया तस्स नाणया भयणाए, जस्स पुण नाणाया तस्स दवियाया नियमं अत्थि । जस्स दवियाया तस्स दंसणाया नियमं अत्थि, जस्स वि दंसणाया तस्स दवियाया नियमं अत्थि । जस्स दवियाया तस्स चरित्ताया भयणाए, जस्स पुण चरित्ताया तस्स दवियाया नियमं अत्थि । एवं वीरियायाए वि समं । [ २-३ प्र.] भगवन् ! जिसके द्रव्यात्मा होती है क्या उसके उपयोगात्मा होती है और जिसके उपयोगात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा होती है ? इसी प्रकार शेष सभी आत्माओं के द्रव्यात्मा से सम्बन्ध के विषय में पृच्छा करनी चाहिए ।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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