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________________ १७८ पृथ्वी के विषय में कहना चाहिए। १५. छट्टे ओवासंतरे अव्वणे [१५] छठा अवकाशान्तर वर्णादि रहित है । व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १६. तणुवाय जाव छट्ठा पुढवी, एयाइं अट्ठ फासाइं । [१६] छठा तनुवात, घनवात, घनोदधि और छठी पृथ्वी, ये सब आठ स्पर्श वाले हैं। १७. एवं जहा सत्तमाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया तहा जाव पढमाए पुढवीए भाणियव्वं । [१७] जिस प्रकार सातवीं पृथ्वी की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार प्रथम पृथ्वी तक जानना चाहिए । १८. जंबुद्दीवे जाव' सयंभुरमणे समुद्दे सोहम्मे कप्पे जाव' ईसिपब्भारा पुढवी, नेरइयावास जाव' वेमाणियावास, एयाणि सव्वाणि अट्ठफासाणि । [१८] जम्बूद्वीप से लेकर स्वयम्भूरमण समुद्र तक, सौधर्मकल्प से ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक, नैरयिकावास से लेकर वैमानिकवास तक सब आठ स्पर्श वाले हैं। विवेचन — सप्तम अवकाशान्तर से वैमानिकवास तक में वर्णादिप्ररूपणा — प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. १२ से १८ तक) में सप्तम अवकाशान्तर, सप्तम तनुवात, सप्तम घनवात, सप्तम घनोदधि, सप्तम पृथ्वी, छठ, अवकाशान्तर, छठा तनुवात- घनवात- घनोदधि, छठी पृथ्वी, तथा पंचम - चतुर्थ-तृतीय- द्वितीय- प्रथम नरकपृथ्वी एवं जम्बूद्वीप से लेकर स्वयम्भूरमण समुद्र तक, सौधर्म देवलोक से लेकर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक और नैरयिकावास से लेकर वैमानिक वास तक में वर्णादि की प्ररूपणा की गई है । 'अवकाशान्तर' आदि पारिभाषिक शब्दों का स्वरूप- प्रथम और द्वितीय नरकपृथ्वी के अन्तराल (बीच) में जो आकाशखण्ड है, वह 'प्रथम अवकाशान्तर' कहलाता है । इस अपेक्षा से सप्तम नरक - पृथ्वी से नीचे का 'आकाशखण्ड' सप्तम अवकाशान्तर है। उसके ऊपर सप्तम तनुवात है, उसके ऊपर सातवाँ घनवात है और उसके ऊपर सातवाँ घनोदधि है और सातवें घनोदधि से ऊपर सप्तम नरकपृथ्वी है। इसी क्रम से प्रथम नरकपृथ्वी तक जानना चाहिए ।" अवकाशान्तर जितने भी हैं, वे आकाश रूप हैं और आकाश अमूर्त होने से वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से सर्वथा रहित है । तनुवात, घनवात, घनोदधि एवं नरकपृथ्वी आदि पौद्गलिक होने से मूर्त हैं। अतएव वे वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले हैं और बादरपरिणाम वाले होने से इनमें शीत-उष्ण-स्निग्ध- रूक्ष, मृदु-कठिन, १. 'जाव' पद लवणमसुद्र आदि पदों का सूचक है। २. यहाँ ' जाव' पद असुरकुमारवास आदि तथा भवन, नगर, विमान तथा तिर्यग्लोक में स्थित नगरियों का सूचक है । ३. 'जाव' पद से ईशान सनत्कुमार, ब्रह्मलोक, माहेन्द्र, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्रानत, आरण और अच्युत, नव ग्रैवेयक, पांच अनुत्तर विमान और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी समझना चाहिए। ४. वियाहपण्णत्तसुत्तं ( मूलपाठ - टिप्पणयुक्त), पृ. ५८९ ५. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५७४
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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