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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
३५. [ १ ] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया वेउव्वियपोग्गलपरियट्टा अतीया ?
अनंता ।
[३५-१ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के नैरयिक भव में अतीतकालीन वैक्रिय- पुद्गलपरिवर्त कितने हुए हैं ?
[ २५-१ उ.] गौतम ! (ऐसे वैक्रिय - पुद्गलपरिवर्त्त) अनन्त हुए हैं ।
[२] केवतिया पुरेक्खडा ?
एक्कुत्तरिया जाव अनंता वा ।
[ ३५-२ प्र.] भगवन् ! भविष्यकालीन ( वैक्रिय- पुद्गलपरिवर्त) कितने होंगे ?
[ ३५-२ उ.] गौतम ! (किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे। जिनके होंगे उनके) एक से लेकर (१,
२, ३) उत्तरोत्तर उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा यावत् अनन्त होंगे।
३६. एवं जाव थणियकुमारत्ते ।
[३६] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार भव तक कहना चाहिए।
३७. [१] पुढविकाइयत्ते पुच्छा । नत्थि एक्को वि।
[ ३७-१ प्र.] ( भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के) पृथ्वीकायिक भव में (अतीत में वैक्रिय पुद्गलपरिवर्त्त) कितने हुए ?
[३७-१ उ.] ( गौतम ! ) एक भी नहीं हुआ ।
[ २ ] केवतिया पुरेक्खडा ? नत्थि एक्को वि।
[३७-२ प्र.] (भगवन् !) भविष्यत्काल में (ये) कितने होंगे ?
[ ३७-२ उ.] गौतम ! एक भी नहीं होगा ।
३८. एवं जत्थ वेउव्वियसरीरं तत्थ एगुत्तरिओ, जत्थ नत्थि तत्थ जहा पुढविकाइयत्ते तहा भाणियव्वं जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते ।
[३८] इस प्रकार जहाँ वैक्रियशरीर है, वहाँ एक से लेकर उत्तरोत्तर (अनन्त तक), (वैक्रिय पुद्गलपरिवर्त जानना चाहिए।) जहाँ वैक्रियशरीर नहीं है वहाँ (प्रत्येक नैरयिक के) पृथ्वीकायभव में (वैक्रिय - पुद्गलपरिवर्त के विषय में) कहा, उसी प्रकार यावत् (प्रत्येक) वैमानिक जीव के वैमानिक भव पर्यन्त कहना चाहिए।
३९. तेयापोग्गलपरियट्टा कम्मापोग्गलपरियट्टा य सव्वत्थ एक्कुत्तरिया भाणियव्वा । मणपोग्गलपरियट्टा सव्वेसु पंचेंदिएस एगुत्तरिया । विमलिंदिएसु नत्थि । वइपोग्गलपरियट्टा एवं चेव, नवरं एगिंदिए 'नत्थि' भाणियव्वा । आणापाणुपोग्गलपरियट्टा सव्वत्थ एकुत्तरिया जाव वेमाणियस्स
।