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________________ १६४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ३५. [ १ ] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया वेउव्वियपोग्गलपरियट्टा अतीया ? अनंता । [३५-१ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के नैरयिक भव में अतीतकालीन वैक्रिय- पुद्गलपरिवर्त कितने हुए हैं ? [ २५-१ उ.] गौतम ! (ऐसे वैक्रिय - पुद्गलपरिवर्त्त) अनन्त हुए हैं । [२] केवतिया पुरेक्खडा ? एक्कुत्तरिया जाव अनंता वा । [ ३५-२ प्र.] भगवन् ! भविष्यकालीन ( वैक्रिय- पुद्गलपरिवर्त) कितने होंगे ? [ ३५-२ उ.] गौतम ! (किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे। जिनके होंगे उनके) एक से लेकर (१, २, ३) उत्तरोत्तर उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा यावत् अनन्त होंगे। ३६. एवं जाव थणियकुमारत्ते । [३६] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार भव तक कहना चाहिए। ३७. [१] पुढविकाइयत्ते पुच्छा । नत्थि एक्को वि। [ ३७-१ प्र.] ( भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के) पृथ्वीकायिक भव में (अतीत में वैक्रिय पुद्गलपरिवर्त्त) कितने हुए ? [३७-१ उ.] ( गौतम ! ) एक भी नहीं हुआ । [ २ ] केवतिया पुरेक्खडा ? नत्थि एक्को वि। [३७-२ प्र.] (भगवन् !) भविष्यत्काल में (ये) कितने होंगे ? [ ३७-२ उ.] गौतम ! एक भी नहीं होगा । ३८. एवं जत्थ वेउव्वियसरीरं तत्थ एगुत्तरिओ, जत्थ नत्थि तत्थ जहा पुढविकाइयत्ते तहा भाणियव्वं जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते । [३८] इस प्रकार जहाँ वैक्रियशरीर है, वहाँ एक से लेकर उत्तरोत्तर (अनन्त तक), (वैक्रिय पुद्गलपरिवर्त जानना चाहिए।) जहाँ वैक्रियशरीर नहीं है वहाँ (प्रत्येक नैरयिक के) पृथ्वीकायभव में (वैक्रिय - पुद्गलपरिवर्त के विषय में) कहा, उसी प्रकार यावत् (प्रत्येक) वैमानिक जीव के वैमानिक भव पर्यन्त कहना चाहिए। ३९. तेयापोग्गलपरियट्टा कम्मापोग्गलपरियट्टा य सव्वत्थ एक्कुत्तरिया भाणियव्वा । मणपोग्गलपरियट्टा सव्वेसु पंचेंदिएस एगुत्तरिया । विमलिंदिएसु नत्थि । वइपोग्गलपरियट्टा एवं चेव, नवरं एगिंदिए 'नत्थि' भाणियव्वा । आणापाणुपोग्गलपरियट्टा सव्वत्थ एकुत्तरिया जाव वेमाणियस्स ।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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