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________________ १५४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एगयओ दसपदेसिए०, एगयओ असंखिजपएसिए० भवति; अहवा एगयओ संखेजपएसिए खंधे एगयओ असंखेजपएसिए खंधे भवति; अहवा दो असंखेजपएसिए खंधा भवंति। तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपो०, एगयओ असंखेजपएसिए० भवति; अहवा एगयओ परमाणुपो० एगयओ दुपएसिए०, एगेयओ असंखेजपएसिए० भवति; जाव अहवा एगयओ परमाणुपो०, एगयओ दसपदेसिए०, एगयओ असंखेजपएसिए० भवति; अहवा एगयओ परमाणुपो०, एगयओ संखेजपएसिए० एगयओ असंखेजपएसिए० भवति; अहवा एगयओ परमाणुपो०, एगयओ दो असंखेजपएसिया खंधा भवंति; अहवा एगेयओ दुपएसिए०, एगयओ दो असंखेजपएसिया खंधा भवंति; एवं जाव अहवा एगयओ संखेजपएसिए०, एगयओ दो असंखेजपएसिया खंधा भवंति; अहवा तिन्नि असंखेज्जपएसिया० भवंति। चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपो०, एगयओ असंखेजपएसिए० भवति। एवं चउक्कगसंजोगो जाव दसगसंजोगो।एए जहेव संखेजपएसियस्स, नवरं असंखेजगंएगं अहिगं भाणियव्वं जाव अहवा दस असंखेजपदेसिया खंधा भवंति। संखेजहा कज्जमाणे एगयओ संखेजा परमाणुपोग्गला, एगयओ असंखेजपएसिए खंधे भवति; अहवा एगयओ संखेजा दुपएसिया खंधा, एगयओ असंखेजपएसिए खंधे भवति एवं जाव अहवा एगयओ संखेजा दसपएसिया खंधा, एगयओ असंखेजपएसिए खंधे भवति; अहवा एगयओ संखेजा संखेजपएसिए खंधा, एगयओ असंखेजपएसिए खंधे भवति; अहवा संखेजा असंखेजपएसिया खंधा भवंति। असंखेजहा कज्जमाणे असंखेजा परमाणुपोग्गला भवंति। [१२ प्र.] भगवन् ! असंख्यात परमाणु-पुद्गल संयुक्तरूप से इकट्ठे होने पर (उनका) क्या होता है ? [१२ उ.] गौतम ! उनका एक असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होता है। उसके विभाग किये जाने पर दो, तीन यावत् दस विभाग भी होते हैं, संख्यात विभाग भी होते हैं, असंख्यात विभाग भी। दो विभाग किये जाने पर—एक ओर एक परमाणु पुद्गल और एक ओर एक असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध होता है। यावत् (पूर्ववत्)-अथवा एक ओर एक दशप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा एक ओर एक संख्यातप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा दो असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध होते हैं। तीन विभाग किये जाने पर—एक ओर पृथक्-पृथक् दो परमाणु-पुद्गल और एक ओर एक असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा एक ओर एक परमाणु पुद्गल, एक ओर एक द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है, यावत्-अथवा एक ओर एक परमाणु-पुद्गल, एक ओर दश-प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा एक ओर एक परमाणु-पुद्गल, एक ओर एक
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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