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बारहवाँ शतक : उद्देशक-४
१५३ स्कन्ध और एक ओर एक संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होता है । अथवा एक ओर पृथक्-पृथक् दो परमाणु-पुद्गल, एक ओर एक त्रिप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक संख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है। इस प्रकार यावत्-अथवा एक ओर दो पृथक्-पृथक् परमाणु-पुद्गल, एक ओर एक दशप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक संख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है । अथवा एक ओर पृथक्-पृथक् दो परमाणु-पुद्गल और एक ओर दो संख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं । अथवा एक ओर एक परमाणु-पुद्गल, एक ओर एक द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर दो संख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं। यावत् अथवा एक ओर एक परमाणु-पुद्गल, एक ओर एक दशप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर दो संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होते हैं। अथवा एक ओर एक परमाणु-पुद्गल और एक ओर तीन संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होते हैं । इस प्रकार यावत्-एक ओर एक दशप्रदेशी स्कन्ध होता है और एक ओर तीन संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होते हैं । अथवा चारों संख्यातप्रदेशी स्कन्ध होते हैं।
इसी प्रकार इस क्रम से पंचसंयोगी विकल्प भी कहने चाहिए, यावत् नव-संयोगी विकल्प तक कहना चाहिए।
उसके दश विभाग किये जाने पर—एक ओर पृथक्-पृथक् नौ परमाणु-पुद्गल और एक ओर एक संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा एक ओर पृथक्-पृथक् आठ परमाणु-पुद्गल, एक ओर एक द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होता है। इसी क्रम से एक-एक की संख्या उत्तरोतर बढ़ाते जाना चाहिए, यावत् एक ओर एक दशप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर नौ संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होते हैं, अथवा दस संख्यातप्रदेशी स्कन्ध होते हैं।
यदि उसके संख्यात विभाग किये जाएँ तो पृथक्-पृथक् संख्यात परमाणु-पुद्गल होते हैं।
विवेचन—संख्यातप्रदेशी स्कन्ध के विभागीय विकल्प—संख्यात प्रदेश के विभाग किये जाने पर कुल ४६० भंग होते हैं । यथा—दो विभाग के द्विक संयोगी ११ भंग, तीन विभाग के त्रिकसंयोगी २१ भंग, चार विभाग के चतुष्कसंयोगी ३१ भंग, पांच विभाग के पंचसंयोगी ४१ भंग, छह विभाग के षट्-संयोगी ५१ भंग, सात विभाग के सप्तयोगी ६१ भंग, आठ विभाग के अष्टसंयोगी ७१ भंग, नौ विभाग के नव-संयोगी ८१ भंग, दस विभाग के दशसंयोगी ९१ भंग और संख्यात परमाणु-विभाग के संख्यात संयोगी एक भंग, इस प्रकार कुल ४६० भंग हुए। असंख्यात परमाणु पुद्गलों के संयोग-विभाग से निष्पन्न भंग
१२. असंखेजा भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंत्ति एगयओ साहण्णित्ता किं भवति ? गोयमा ! असंखेजपएसिए खंधे भवति। से भिजमाणे दुहा वि, जाव दसहा वि, संखेजहा वि, असंखेजहा वि कज्जति।
दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपो०, एगयओ असंखेजपएसिए खंधे भवति; जाव अहवा १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५६६