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जीव में वर्णादि प्ररूपणा १८३, कर्मों से जीव का विविध रूपों में परिणमन १८३. छठा उद्देशक : राहु
१८४ राहुः स्वरूप, नाम और विमानों के वर्ण तथा उनके द्वारा चन्द्रग्रसन के भ्रम का निराकरण १८४, ध्रुवराहु और पर्वराहु का स्वरूप एवं दोनों द्वारा चन्द्र को आवृत्त-अनावृत्त करने का कार्यकाल १८७, चन्द्र को शशि-सश्री और सर्य को आदित्य कहने का कारण १८८. चन्द्र और सूर्य की अग्रमहिषियों का वर्णन १८९, चन्द्र-सूर्य के कामभोग सुखानुभव का
निरूपण १९०. सप्तम उद्देश्क : लोक का परिमाण
१९३ लोक का परिमाण १९३, लोक में परमाणुमात्र प्रदेश में भी जीव के जन्म-मरण से अरिक्तता की दृष्टान्तपूर्वक प्ररूपणा १९३, चौवीस दण्डकों की आवाससंख्या का अतिदेशपूर्वक निरूपण १९५, एक जीव या सर्व जीवों के चौवीस दण्डकवर्ती आवासों में विविध रूपों में अनन्तश: उत्पन्न होने की प्ररूपणा १९५, एक जीव या सर्व जीवों के माता-पिता आदि के, शत्रु आदि के, राजादि के तथा दासादि के रूप में अनन्तश: उत्पन्न
होने की प्ररूपणा २००. आठवाँ उद्देशक : नाग
२०३ महर्द्धिक देव की नाग, मणि, वृक्ष में उत्पत्ति, महिमा और सिद्धि २०३, शीलादिरहित
वानरादि का नरकगामित्वनिरूपण २०५. नवम उद्देशक : देव ।।
२०७ देवों के पांच प्रकार और स्वरूपनिरूपण—भव्यद्रव्यदेव, नरदेव, धर्मदेव, देवाधिदेव और भावदेव, २०७, पंचविध देवों की उत्पत्ति का सकारण निरूपण २०९, पंचविध देवों की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण २१२, पंचविध देवों की वैक्रियशक्ति का निरूपण २१४, पंचविध देवों की उद्वर्त्तना का निरूपण २१५, स्व-स्वरूप में पंचविध देवों की संस्थिति का निरूपण २१८, पंचविध देवों के अन्तरकाल की प्ररूपणा २१८, पंचविध
देवों का अल्पबहुत्व २२०, भवनवासी आदि देवों का अल्पबहुत्व २२१. दशम उद्देशक : आत्मा
२२३ आत्मा के आठ प्रकार २२३, द्रव्यात्मा आदि आठों का परस्पर सहभाव-असहभाव निरूपण २२४, आत्माओं का अल्पबहुत्व २२६, आत्मा सम्बन्धी विविध प्रश्नोत्तर २२७, परमाणु द्विप्रदेशी त्रिप्रदेशी आदि पुद्गल-स्कन्ध सम्बन्धी भंग २३६.
तेरहवां शतक प्राथमिक - दस उद्देशकों का परिचय २४३, दस उद्देशकों के नाम २४५
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