SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वं० २ पसिणाई पुच्छंति, प० पु० अट्ठाइं परियादियंति, अ० प० २ उट्ठाए उट्टेति, उ० २ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्ठगाओ चेतियाओ पडिनिक्खमंति, प० २ जेणेव सावत्थी नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। [९] तत्पश्चात् वे (श्रावस्ती के) श्रमणोपासक भगवान् महावीर के पास धर्मोपदेश सुन कर और अवधारण करके हर्षित और सन्तुष्ट हुए। उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया, (और उनसे कतिपय) प्रश्न पूछे, तथा उनका अर्थ (उत्तर) ग्रहण किया। फिर उन्होंने खड़े हो कर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन- नमस्कार किया और कोष्ठक उद्यान से निकल कर श्रावस्ती नगरी की ओर जाने का विचार किया। विवेचन—प्रस्तुत चार सूत्रों (६ से ९ तक) में निम्नोक्त बातों का प्रतिपादन किया गया है१. भगवान् महावीर का श्रावस्ती में पदार्पण और परिषद् का वंदनादि के लिए निर्गमन। २. श्रावस्ती के उन विशिष्ट श्रमणोपासकों द्वारा भी भगवान् के वन्दन-प्रवचनश्रवणादि के लिए पहुँचना। ३. भगवान् द्वारा सबको धर्मोपदेश करना। ४. धर्मोपदेश सुन उक्त श्रमणोपासकों द्वारा भगवान् से अपने प्रश्नों का उत्तर पाकर श्रावस्ती की ओर प्रत्यागमन। कठिन शब्दार्थ—पहारेत्थ गमणाए-गमन के लिए निर्धारण किया। शंख श्रमणोपासक द्वारा पाक्षिक पौषधार्थ श्रमणोपासकों को भोजन तैयार कराने का निर्देश १०. तए णं से संखे समणोवासए ते समणोवासए एवं वदासी—तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेह। तए णं अम्हे तं विपुलं असण पाण-खाइम-साइमं आसाएमाणा विस्साएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाण पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो। __ [१०] तदनन्तर उस शंख श्रमणोपासक ने दूसरे (उन साथी) श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहादेवानुप्रियो ! तुम विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम (भोजन) तैयार कराओ। फिर (भोजन तैयार हो जाने पर) हम उस प्रचुर अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य (भोजन) का आस्वादन करते हुए, विशेष प्रकार से आस्वादन करते हुए, एक दूसरे को देते हुए, भोजन करते हुए पाक्षिक पौषध (पक्खी के पोसह) का अनुपालन करते हुए अहोरात्र-यापन करेंगे। ११. तए णं ते समणोवासगा संखस्स समणोवासगस्स एयमढं विणएणं पडिसुणंति। [११] इस पर उन (अन्य सभी) श्रमणोपासकों ने शंख श्रमणोपासक की इस बात को विनयपूर्वक स्वीकार किया। विवेचन—प्रस्तुत दो सूत्रों (१०-११) में तीन बातों का विशेषरूप से निरूपण किया गया है—(१) शंख श्रमणोपासक द्वारा साथी श्रमणोपासकों को विपुल भोजन तैयार कराने का निर्देश, (२) परस्पर भोजन देते और करते हुए पाक्षिक पौषध करने का प्रस्ताव, तथा (३) साथी श्रमणोपासकों द्वारा उक्त प्रस्ताव का स्वीकार।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy