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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन — प्रस्तुत दो सूत्रों (६०-६१ ) में मुख्यतया दो घटनाओं का निरूपण किया गया है(१) अपने पूर्वभव की कथा सुनकर सुदर्शन श्रेष्ठी को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया, जिससे भगवान् द्वारा कथित पूर्वजन्म-वृत्तान्त को हूबहू स्पष्ट रूप से जानने लगा और (२) उसी श्रद्धा और संवेग में द्विगुणित वृद्धि हुई । भगवान् को वन्दन नमस्कार करके प्रव्रज्या ग्रहण करने की इच्छा व्यक्त की । ऋषभदत्त की तरह भगवान् से प्रव्रज्या ग्रहण की, १४ पूर्वों का अध्ययन किया, तत्पश्चात् तपश्चर्या की, पूरे बारह वर्ष तक श्रमणत्व का पालन किया, अन्तिम समय में संल्लेखना संथारा किया। सर्वकर्मों से मुक्त - सिद्ध-बुद्ध हुआ । सणीपुव्वजातीसरणे- - ऐसा ज्ञान जिससे संज्ञीरूप से किये हुए अपने निरन्तर संलग्न पूर्वभव जानेदेखे जा सकें । ९८ दुगुणाणीयसङ्घसंवेगे — श्रद्धा और संवेग दुगुने हो गए ॥ ग्यारहवाँ शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक समाप्त ॥ १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५५४ २. (क) संज्ञिरूपा या पूर्वा जातिस्तस्याः स्मरणं यत्तत्तथा । (ख) पूर्वकालापेक्षया द्विगुणावानीतौ श्रद्धासंवेगौ यस्य स तथा । श्रद्धा -- तत्त्वार्थ श्रद्धानं सदनुष्ठानचिकीर्षा वा । संवेगो भवभयं मोक्षाभिलाषो वा । | - भगवती. अ. वृत्ति, पत्र. ५४९
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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