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________________ ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक - ११ ६९ अथवा शरीर आत्मा से पृथक् होता है, वह मरणरूप काल मरणकाल कहलाता है । मरण शब्द काल का पर्यायवाची है, अतः मरण ही काल है । अद्धाकाल-प्ररूपणा १६. [१] से किं ते अद्धाकाले ? अद्धाकाले अणेगविहे पन्नत्ते, से णं समयट्टयाए आवलियट्टयाए जाव उस्सप्पिणिअट्ठयाए । [१६-१ प्र.] भगवन् ! अद्धाकाल क्या है ? [१६-१ उ.] सुदर्शन ! अद्धाकाल अनेक प्रकार का कहा गया है। वह समयरूप प्रयोजन के लिए है, आवलिकारूप प्रयोजन के लिए है, यावत् उत्सर्पिणीरूप प्रयोजन के लिए है। [ २ ] एस णं सुदंसणा ! अद्धा दोहारच्छेदेणं छिज्जमाणी जाहे विभागं नो हव्वा मागच्छति से तं समए समयट्ठताए । [१६ - २ प्र.] हे सुदर्शन ! दो भागों में जिसका छेदन - विभाग न हो सके, वह 'समय' है, क्योंकि वह. समयरूप प्रयोजन के लिए है । [ ३ ] असंखेज्जाणं समयाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा 'आवलिय' त्ति पवुच्चइ । संखेज्जाओ आवलियाओं जहा सालिउद्देसओ ( स. ६ उ ७ सु. ४-५ ) जाव तं सागरोवमस्स उ एगस्स भवे परीमाणं । [१६-६] असंख्य समयों के समुदाय की एक आवलिका कहलाती है । संख्यात आवलिका का एक उच्छ्वास होता है, इत्यादि छठे शतक के शालि नामक सातवें उद्देशक (सू. ४-७ ) में कहे अनुसार यावत्'यह एक सागरोपम का परिमाण होता है', यहाँ तक जान लेना चाहिए । विवेचन — अद्धाकाल : लक्षण, प्रकार एवं प्रयोजन—समय, आवलिका आदि काल, अद्धाकाल कहलाता है। इसके समय, आवलिकादि अनेक भेद हैं। समय से लेकर उत्सर्पिणी तक जितने भी कालमान हैं, सब अद्धाकाल के अन्तर्गत आते हैं। 'समय' की परिभाषा- -काल के सबसे छोटे भाग को 'समय' कहते हैं, जिसके फिर दो विभाग न हो सकें। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५३४ २. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति पत्र ५३५ : समयरूपोऽर्थः समयार्थस्तद्भावस्तत्ता तया समयार्थतया — समय भावेनेत्यर्थ: । ३. द्वो हारौ भागौ यत्र छेदने - द्विधा वा कार: करणं यत्र तद् द्विहारं द्विधाकारं वा तेन यदा तदा समय इति शेषः । -भगवती अ. वृत्ति, पृ. ५३५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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