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के दिन और रात होते हैं, तब उनकी पौरुषी ४३ मुहूर्त की होती है।
समान दिवस और रात्रि - चैत्री और अश्विनी पूर्णिमा को दिन और रात्रि दोनों बराबर होते हैं, अर्थात्—इन दोनों में १५ - १५ मुहूर्त का दिन और रात्रि होते हैं । यह कथन भी व्यवहारनय की अपेक्षा से है। निश्चय में तो कर्कसंक्रान्ति और मकरसंक्रान्ति से जो ९२वाँ दिन होता है, तब रात्रि और दिवस दोनों समान होते हैं। जघन्य दिवस और रात्रि - बारह मुहूर्त की जघन्य रात्रि आषाढ़ी - पूर्णिमा को और १२ मुहूर्त का जघन्य दिन पौष पूर्णिमा को होता है। जब १२ मुहूर्त के दिन और रात होते हैं, तब दिन एवं रात्रि की पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है ।
यथायुर्निर्वृत्तिकाल-प्र
-प्ररूपणा
१४. से किं तं अहाउनिव्वत्तिकाले ?
अहाउनिव्वत्तिकाले, जं णं जेणं नेरइएण वा तिरिक्खजोणिएण वा मणुस्सेण वा देवेण वां अहाउयं निव्वत्तियं से त्तं अहाउनिव्वत्तिकाले ।
[१४ प्र.] भगवन् ! यह यथायुर्निर्वृत्तिकाल क्या है ?
[१४ उ ] (सुदर्शन !) जिस किसी नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य अथवा देव ने स्वयं जो (जिस गति का) और जैसा भी आयुष्य बांधा है, उसी प्रकार उसका पालन करना—भोगना, 'यथायुर्निर्वृत्तिकाल' कहलाता है ।
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
यह हुआ यथायुर्निर्वृत्तिकाल का लक्षण ।
विवेचन — यथायुर्निर्वृत्तिकाल की परिभाषा — चारों गतियों में से जिस गति के जीव ने जिस भव की जितनी आयु बांधी है, उतना आयुष्य भोगना यथायुर्निर्वृत्तिकाल कहलाता है।
मरणकाल
प्ररूपणा
१५. से किं तं मरणकाले ?
मरणकाले, जीवो वा सरीराओ, सरीरं वा जीवाओ। से त्तं मरणकाले ।
[१५ प्र. ] भगवन् ! मरणकाल क्या है ?
[१५ उ.] सुदर्शन ! शरीर से जीव का अथवा जीव से शरीर का ( पृथक् होने का काल) मरणकाल है, यह है— मरणकाल का लक्षण
विवेचन — मरणकाल की परिभाषा — जीवन का अन्तिम समय, जब आत्मा शरीर से पृथक् होता है,
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५३३-५३४
२. यथा = येन प्रकारेणायुषो निर्वृत्तिः बन्धनं, तथा यः कालः - अवस्थितिरसौ यथायुर्निवृत्तिकालो नारकाद्यायुष्कलक्षणः ।
भगवती अ. वृ. पत्र ५३३
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