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________________ छठा शतक : उद्देशक-५ नहीं हुए हैं। विवेचन—विभिन्न पहलुओं से कृष्णराजियों से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर–प्रस्तुत पन्द्रह सूत्रों (सू. १७ से ३१ तक) में तमस्काय की तरह कृष्णराजियों के सम्बंध में विभिन्न प्रश्न उठाकर उनके समाधान प्रस्तुत कर दिये गये हैं। तमस्काय और कृष्णराजि के प्रश्नोत्तरों में कहाँ सादृश्य, कहाँ अन्तर? – तमस्काय और कृष्णराजि के प्रश्नों में लगभग सादृश्य है, किन्तु उनके उत्तरों में तमस्कायी उत्तरों से कहीं-कहीं अन्तर है। यथा—कृष्णराजियां ८ बताई गई हैं। इनके संस्थान में अन्तर है। इनका आयाम और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन है, जबकि विष्कम्भ (चौड़ाई-विस्तार) संख्येय हजार योजन है। ये तमस्काय से विशालता में कम हैं, किन्तु इनकी भयंकरता तमस्काय जितनी ही है। __ कृष्णराजियों में ग्रामादि या गृहादि नहीं हैं । वहाँ बड़े-बड़े मेघ हैं, जिन्हे देव बनाते हैं, गर्जाते व बरसाते हैं। वहाँ विग्रहगतिसमापन्न बादर अप्काय, अग्निकाय और वनस्पतिकाय के सिवाय कोई बादर अप्काय, अग्निकाय या वनस्पतिकाय नहीं है। वहाँ न तो चन्द्रादि हैं, और न चन्द्र, सूर्य की प्रभा है। कृष्णराजियों का वर्ण तमस्काय के सदृश ही गाढ़ काला एवं अन्धकारपूर्ण है। कृष्णराजियों के ८ सार्थक नाम हैं। ये कृष्णराजियाँ अप्काय से परिणामस्वरूप नहीं हैं किन्तु सचित्त और अचित्त पृथ्वी के परिणामरूप हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि ये जीव और पुद्गल, दोनों के विकार रूप हैं । बादर अप्काय, अग्निकाय और वनस्पतिकाय को छोड़कर अन्य सब जीव एक बार ही नहीं, अनेक बार और अनन्त बार कृष्णराजियों में उत्पन्न हो चुके हैं। कृष्णराजियों के आठ नामों की व्याख्या-कृष्णराजि-काले वर्ण की पृथ्वी और पुद्गलों के परिणामरूप होने से काले पुद्गलों की राजि-रेखा। मेघराजि—काले मेघ की रेखा के सदृश । मघा - छठी नरक के समान अन्धकार वाली। माघवती–सातवीं नरक के समान गाढान्धकार वाली। वातपरिघा—आंधी के समान सघन अन्धकार वाली और दुर्लंघ्य । वातपरिक्षोभा—आंधी के समान अन्धकारवाली क्षोभजनक। देवपरिघा—देवों के लिए दुर्लंघ्य। देवपरिक्षोभा-देवों के लिए क्षोभजनक। लोकान्तिक देवों से सम्बन्धित विमान, देव-स्वामी, परिवार, संस्थान, स्थिति, दूरी आदि का विचार ३२. एयासिं णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु ओवासंतरेसु अट्ठ लोगंतियविमाणा पण्णत्ता, तं जहा—अच्ची अच्चिमाली वइरोयणे पभंकरे चंदाभे सुक्काभे सुपतिट्ठाभे, मज्झे रिट्ठाभे। [३२] इन (पूर्वोक्त) आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान हैं। १. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मू.पा.टि.) भाग १, पृ. २५१ से २५३ (ख) भगवती अ. वृत्ति पत्रांक २७१ २. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २७१
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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