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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २७. कण्हराईओ णं भंते ! केरिसियाओ वण्णेणं पन्नत्ताओ? गोयमा ! कालाओ जाव' खिप्पामेव वीतीवएजा। [२८ प्र.] भगवन् ! कृष्णराजियों का वर्ण कैसा है ? [२८ उ.] गौतम ! कृष्णराजियों का वर्ण काला है, यह काली कान्ति वाला है, यावत् परमकृष्ण (एकदम काला) है। तमस्काय की तरह अतीव भयंकर होने से इसे देखते ही देव क्षुब्ध हो जाता है; यावत् अगर कोई देव (साहस करके इनमें प्रविष्ट हो जाए, तो भी वह) शीघ्रगति से झटपट इसे पार कर जाता है। २९. कण्हराईणं भंते ! कति नामधेजा पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ नामधेजा पण्णत्ता, तं जहा—कण्हराई ति वा, मेहराई ति वा, मघा इ वा, माघवती ति वा, वातफलिहे ति वा, वातपलिक्खोभे इ वा, देवफलिहे इ वा, देवपलिक्खोभे ति वा। [२९ प्र.] भगवन् ! कृष्णराजियों के कितने नाम कहे गए हैं ? [२९ उ.] गौतम ! कृष्णराजियों के आठ नाम कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं -- (१) कृष्णराजि, (२) मेघराजि, (३) मघा, (४) माघवती, (५) वातपरिघा, (६) वातपरिक्षोभा, (७) देवपरिघा और (८) देवपरिक्षोभा। ३०. कण्हराईओ णं भंते ! किं पुढविपरिणामाओ, आउपरिणामाओ, जीवपरिणामाओ, पुग्गलपरिणामाओ? गोयमा ! पुढविपरिणामाओ, नो आउपरिणामाओ, जीवपरिणामाओ वि, पुग्गलपरिणामाओ वि। [३०. प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियां पृथ्वी के परिणामरूप हैं, जल के परिणामरूप हैं, या जीव के परिणामरूप हैं, अथवा पुद्गलों के परिणामरूप भी हैं। [३० उ.] गौतम ! कृष्णराजियां पृथ्वी के परिणामरूप हैं, किन्तु जल के परिणामरूप नहीं हैं, वे जीव के परिणामरूप भी हैं और पुद्गलों के परिणामरूप हैं ? ३१. कण्हराईसु णं भंते ! सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता उववन्नपुव्वा ? हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो, नो चेव णं बादरआउकाइयत्ताए, बादरअगणिकाइयत्ताए, बादरवणस्सतिकाइयत्ताए वा। [३१ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में सभी प्राण, भूत जीव और सत्त्व पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? [३१ उ.] हाँ, गौतम ! सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व कृष्णराजियों में अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं, किन्तु बादर अप्कायरूप से, बादर अग्निकायरूप से और बादर वनस्पतिकायरूप से उत्पन्न १. 'जाव' पद यहाँ सू. १३ के निम्नोक्त पाठ का सूचक है - 'कालावभासाओ गंभीरलोमहरिसजणणाओ भीमाओ उत्तासणाओ परमकिण्हाओ वण्णेणं पण्णत्ताओ, देवे वि अत्थेगतिए जेणं तप्पढमयाए पासित्ताणं खुभाएजा, अहे णं अभिसमागच्छेज्जा, तओ पच्छा सीहं सीहं तुरियं तुरियं तत्थ खिप्यामेव वीतीवएजा।'
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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