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छठा शतक : उद्देशक-५ विविध पहलुओं से कृष्णराजियों से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
१७. कति णं भंते ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ। [१७ प्र.] भगवन् ! कृष्णराजियाँ कितनी कही गई हैं ? [१७ उ.] गौतम ! कृष्णराजियाँ आठ हैं। १८. कहि णं भंते ! एयाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ?
गोयमा ! उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं, हव्विं' बंभलोगे कप्पे रिटे विमाणपत्थडे, एत्थ णं अक्खाडग-समचउरंससंठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ, तं जहा—पुरस्थिमेणं दो, पच्चत्थिमेणं दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो। पुरथिमब्भंतरा कण्हराई दाहिणबाहिरं कण्हराई पुट्ठा, दाहिणमब्भंतरा कण्हराई पच्चत्थिमबाहिरं कण्हराईं पुट्ठा, पच्चत्थिमब्भंतरा कण्हराई उत्तरबाहिरं कण्हराईं पुट्ठा, उत्तरऽब्भंतरा कण्हराई पुरथिमबाहिरं कण्हराइं पुट्ठा।दो पुरथिमपच्चत्थिमाओ बाहिराओ कण्हराईओ छलंसाओ, दो उत्तरदाहिणबाहिराओ कण्हराईओ तंसाओ दो पुरथिमपच्चत्थिमासो अब्भिंतराओ कण्हराईओ चउरंसाओ। दो उत्तरदाहिणाओ अब्भिंतराओ कण्हराईओ चउरंसाओ।
पुव्वावरा छलंसा, तंसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा। ___ अब्भंतर चउरंसा सव्वा वि य कण्हराईओ॥१॥
[१८ प्र.] भगवन् ! ये आठ कृष्णराजियाँ
कहाँ है ? त्रिकोण कृष्णराजी
[१८ उ.] गौतम ! ऊपर सनत्कुमार (तृतीय) ८ सुप्रतिष्टाभ
और माहेन्द्र (चतुर्थ) कल्पों (देवलोकों) से ऊपर और ब्रह्मलोक (पंचम) देवलोक के अरिष्ट नामक विमान के (तृतीय) प्रस्तट (पाथड़े) से नीचे (अर्थात्) इस स्थान में, अखाड़ा (प्रेक्षास्थल) के आकार की समचतुरस्त्र (समचौरस) संस्थानवाली आठ कृष्णराजियां हैं। यथा—पूर्व में दो, पश्चिम में दो, दक्षिण में दो और उत्तर में दो। पूर्वाभ्यन्तर अर्थात्-पूर्व दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि
दक्षिणदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श की हुई Smithing
(सटी) है। दक्षिण-दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने पश्चिमदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया
हुआ है। पश्चिम दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने १. हव्विं का स्पष्ट अर्थ है-नीचे। कुछ प्रतियों में परिवर्तित पाठ 'हळिं' 'हेटिंठ' भी मिलता है।
कृष्णराजी स्थापना
उत्तरा
६.शुक्राभ
[चतुष्कोण कृष्णराजी
१. अर्चि
६. सूराभ चतुष्कोण कृष्णराजि
षट्कोण कृष्णराजि
पश्चिम
पूर्वा
षट्कोण कृष्णराजि
३. वैरोचन चतुष्कोण कृष्णराजि
२.अधिमाली
Men meinBA HAINAR
Inde