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________________ छठा शतक : उद्देशक- ५ ५७ गोमा ! काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसजणणे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वण्णेणं पण्णत्ते । देवे विणं अत्थेगतिए जे णं तप्पढमताए पासित्ता णं खुभाएज्जा, अहे णं अभिसमागच्छेज्जा, ततो पच्छा सीहं सीहं तुरियं तुरियं खिप्पामेव वीतीवएज्जा । [१३ प्र.] भगवन् ! तमस्काय वर्ण से कैसा है ? [१३ उ.] गौतम ! तमस्काय वर्ण से काला, काली कान्ति वाला, गम्भीर (गहरा ), रोमहर्षक (रोंगटे खड़े करने वाला), भीम ( भयंकर), उत्त्रासजनक और परमकृष्ण कहा गया है। कोई देव भी उस तमस्काय को देखते ही सर्वप्रथम क्षुब्ध हो जाता है। कदाचित् कोई देव तमस्काय में अभिसमागम (प्रवेश) करे तो प्रवेश करने के पश्चात् वह शीघ्रातिशीघ्र त्वरित गति से झटपट उसे पार (उल्लंघन) कर जाता है। १४. तमुक्कायस्स णं भंते ! कति नामधेज्जा पण्णत्ता ? गोयमा ! तेरस नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा— तमे ति वा, तमुक्काए ति वा, अन्धकारे इवा, महंधकारे इ वा, लोगंधकारे इ वा, लोगतमिस्से इ वा, देवंधकारे ति वा, देवंतमिस्से ति वा, देवारणे ति वा, , देववूहे ति वा, देवफलिहे ति वा, देवपडिक्खोभे ति वा, अरुणोदए ति वा समुद्दे । [ १४ प्र.] भगवन् ! तमुक्काय के कितने नाम (नामधेय) कहे गए हैं ? [ १४ उ.] गौतम ! तमस्काय के तेरह नाम कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं – (१) तम, (२) तमस्काय, (३) अन्धकार, (४) महाअन्धकार, (५) लोकान्धकार, (६) लोकतमिस्र, (७) देवान्धकार, (८) देवतमिस्र, (९) देवारण्य, (१०) देवव्यूह, (११) देवपरिघ, (१२) देवप्रतिक्षोभ, (१३) अरुणोदकसमुद्र । १५. तमुक्काए णं भंते ! किं पुढविपरिणामे आउपरिणामे जीवपरिणामे पोग्गलपरिणामे ? गोयमा ! नोपुढविपरिणामे, आउपरिणामे वि, जीवपरिणामे वि, पोग्गलपरिणामे वि । [१५ प्र.] भगवन् ! क्या तमस्काय पृथ्वी का परिणाम है, जल का परिणाम है, जीव का परिणाम है अथवा पुद्गल का परिणाम है ? [१५ उ.] गौतम ! तमस्काय पृथ्वी का परिणाम नहीं है, किन्तु जल का परिणाम है, जीव का परिणाम भी है और पुद्गल का परिणाम भी है। १६. तमुक्काए णं भंते ! सव्वे पाणा भूता जीवा सत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववन्नपुव्वा ? हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो, णो चेव णं बादरपुढविकाइयत्ताए वा, बादरअगणिकाइयत्ताए वा । [१६ प्र.] भगवन् ! क्या तमस्काय में सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व पृथ्वीकायिक रूप में यावत् त्रसकायिक रूप में पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? [ १६ उ.] हाँ, गौतम ! (सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व तमस्काय में) अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं, किन्तु बादर पृथ्वीकायिक रूप में या बादर अग्निकायिक रूप में उत्पन्न नहीं हुए हैं। विवेचन—तमस्काय के सम्बंध में विभिन्न पहलुओं से प्रश्नोत्तर - प्रस्तुत १६ सूत्रों (सू. १ से १६
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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