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पंचमो उद्देसओ : 'तमुए'
पंचम उद्देशक : तमस्काय तमस्काय के सम्बंध में विविध पहलुओं से प्रश्नोत्तर
१. [१] किमियं भंते ! तमुक्काए त्ति पवुच्चई ? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पवुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पवुच्चति ?
गोयमा ! नो पुढवी तमुक्काए त्ति पवुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पवुच्चति।
[१-१ प्र.] भगवन् ! 'तमस्काय' किसे कहा जाता है ? क्या 'तमस्काय' पृथ्वी को कहते हैं या पानी को?
[१-१ उ.] गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी 'तमस्काय' कहलाता है। [२] से केणढेणं? गोयमा ! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसंपकासेति, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ,से तेणढेणं० । [१-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी तमस्काय कहलाता
[१-२ उ.] गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश (अंश या भाग) को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश (भाग) को प्रकाशित नहीं करता। इस कारण से पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, पानी ही तमस्काय कहलाता है।
२. तमुक्काए णं भंते ! कहिं समुट्ठिए ? कहिं सन्निट्ठिते ?
गोयमा ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेजे दीवे-समुद्दे वीतिवइत्ता अरूणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेतियंताओ अरुणोदयं समुदं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एकपदेसियाए सेढीए इत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए; सत्तरस एक्कवीसे जोयणसते उड्ढं उप्पतित्ता तओ पच्छा तिरियं पवित्थरमाणे पवित्थरमाणे सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंदे चत्तारि वि कप्पे आवरित्ताणं उड्ढे पि य णं जाव बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाणपत्थडं संपत्ते, एत्थ णं तमुक्काए सन्निठिते।
[२ प्र.] भगवन् ! तमस्काय कहाँ से समुत्थित (उत्पन्न-प्रारम्भ) होता है और कहाँ जाकर सन्निष्ठित (स्थित या समाप्त) होता है ?
[२ उ.] गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के बाहर तिरछे असंख्यात द्वीप-समुद्रों को लांघने के बाद