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________________ दशम शतक : उद्देशक-४ ६१९ I वाले । ओसन्ना — उत्तर आचार का पालन करने में आलसी । ओसन्नविहारी— जीवनपर्यन्त शिथिलाचारी । कुसीला — ज्ञानादि आचार की विराधना करने वाले । कुसीलविहारी — जीवनपर्यन्त ज्ञानादि आचार के विरोधक । अहाछंदा — अपनी इच्छानुसार सूत्रविरुद्ध प्रवृत्ति करने वाले । अहाछंदविहारी — जीवनपर्यन्त स्वच्छन्दाचारी । त्रायस्त्रिंशक देवों का लक्षण — जो देव मंत्री और पुरोहित का कार्य करते हैं, वे त्रायस्त्रिशक कहलाते हैं, ये तेतीस की संख्या में होते हैं। सहाया : दो रूप : दो अर्थ - ( १ ) सहायाः - परस्पर सहायक । (२) सभाजा :- परस्पर प्रीतिभाजन । बलीन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देवों की नित्यता का प्रतिपादन ८. [ १ ] अत्थि णं भंते! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो तावत्तीसगा देवा, तावत्तीसगा देवा ? हंता, हत्थि । [८-१ प्र.] भगवन् ! वैरोचनराज वैरोचनेन्द्र बलि के त्रायस्त्रिशक देव हैं ? [८-२ उ.] हाँ गौतम ! हैं । [२] से केणट्ठणं भंते! एवं वुच्चइ - बलिस्स वइरोयणिंदस्स जाव तावत्तीसगा देवा, तावत्तसगा देवा ? तेणं कालेणं तेण समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विब्भेले णामं सन्निवेसे होत्था । वणओ । तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे जहा चमरस्स जाव उववन्ना। जप्पभितिं च णं भंते ! ते विब्भेलगा तावत्ती सहाया गाहावती समणोवासगा बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सेसं तं चेव (सु. ७ [ २ ] ) जाव निच्चे अव्वोच्छित्तिनयट्टयाए । अन्ने चयंति, अन्ने उववज्जंति । [८-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि वैरोचनराज वैरोचनेन्द्र बलि के तेतीस त्रायस्त्रिशक देव हैं ? [८-२ उ.] गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में बिभेल नामक एक सन्निवेश था। उसका वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार करना चाहिए। उस बिभेल सन्निवेश में परस्पर सहायक तेतीस गृहस्थ श्रमणोपासक थे, इत्यादि जैसा वर्णन चमरेन्द्र के त्रायस्त्रिशकों के लिए (५-२ में) १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५०२ २. ' त्रायस्त्रिशा —— मंत्रिविकल्पाः । ' - भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५०२ ३. (क) सहायाः - परस्परेण सहायकारिणः । वही, पत्र ५०२ (ख) सभाजा:- परस्परं प्रीतिभाज: । वियाहप. मू. पा. टि., भा., पृ. ४९४
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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