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________________ ६१० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२] एवं असुरकुमारेण वि तिण्णि आलावगा भाणियव्वा जहा ओहिएणं देवेणं भणिया। [९-२] इसी प्रकार सामान्य देव के आलापकों की तरह असुरकुमार के भी तीन आलापक कहने चाहिए। [३] एवं जाव थणियकुमारेणं । [९-३] इसी प्रकार स्तनितकुमार तक तीन-तीन आलापक कहना चाहिए। १०. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिएणं एवं चेव (सु.९)। [१०] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में भी इसी प्रकार (सू. ९ के अनुसार) कहना चाहिए। विवेचन–अल्पर्द्धिक, महर्द्धिक और समर्द्धिक देवों का एक दूसरे के मध्य में से होकर जाने का गमनसामर्थ्य प्रस्तुत पांच सूत्रों (६ से १० तक) में मध्य में से हो कर जाने के गमनसामर्थ्य के विषय में मुख्यतया ४ आलापक प्रस्तुत किये हैं-(१) अल्पऋद्धिक देव महर्द्धिक देव के साथ, (२) समर्द्धिक समर्द्धिक के साथ, (३) महर्द्धिक देव का अल्पर्द्धिक देव के साथ और (४) अल्पर्द्धिक चारों जाति के देवों का स्व-स्व जातीय महर्द्धिक देवों के साथ। इनका निष्कर्ष यह है कि अल्पर्द्धिक देव महर्द्धिक देव के बीचोंबीच में से हो कर नहीं जा सकते किन्तु महर्द्धिक देव अल्पर्धिक देव के बीचोंबीच में से हो कर पहले या पीछे विमोहित करके या विमोहित किये बिना भी जा सकते हैं । समर्द्धिक समर्द्धिक देव के बीचोंबीच में से हो कर पहले उसे विमोहित करके जा सकता है, बशर्ते कि जिसके बीचोंबीच में से होकर जाना है, वह असावधान हो। विमोहित करने का तात्पर्य–विमोहित का यहाँ प्रसंगवश अर्थ है—विस्मित करना, अर्थात् महिका (धूअर) आदि के द्वारा अन्धकार करके मोह उत्पन्न कर देना। उस अन्धकार को देख कर सामने वाला देव विस्मय में पड़ जाता है कि यह क्या है ? ठीक उस समय उसके न देखते हुए ही बीच में से निकल जाना, विमोहित करके निकल जाना कहलाता है। देव-देवियों का एक दूसरे के मध्य में से होकर गमनसामर्थ्य ११. अप्पिड्डीए णं भंते ! देवे महिड्डीयाए देवीए मझमझेणं वीतीवएज्जा? णो इणठे समठे। [११ प्र.] भगवन् ! क्या अल्पऋद्धिक देव, महदिक देवी के मध्य में से हो कर जा सकता है ? [११ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९९ २. वही, पत्र ४९९
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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