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दशम शतक : उद्देशक-१
५९५ जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय जीव के देश हैं, यावत् अनिन्द्रिय जीव के देश हैं जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमत: एकेन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं, यावत् अनिन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं। उसमें जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के हैं, यथा—रूपी अजीव और अरूपी अजीव। रूपी अजीवों के चार भेद हैं यथा—(१) स्कन्ध, (२) स्कन्धदेश, (३) स्कन्धप्रदेश और (४) परमाणुपुद्गल। जो अरूपी अजीव हैं, वे सात प्रकार के हैं, यथा(१) (स्कन्धरूपसमग्र) धर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु धर्मास्तिकाय का देश है, (२) धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, (३) (३) (स्कन्धरूप) अधर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु अधर्मास्तिकाय का देश है, (४) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, (५) (स्कन्धरूप) आकाशास्तिकाय नहीं, किन्तु आकाशास्तिकाय का देश है, (६) आकाशास्तिकाय के प्रदेश हैं और (७) अद्धासमय अर्थात् काल है।
विवेचन—दिशा-विदिशाओं का आकार एवं व्यापकत्व—पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, ये चारों महादिशाएँ गाड़ी (शकट) की उद्धि (ओढण) के आकार की हैं और आग्नेयी, नैर्ऋती, वायव्या और ऐशानी ये चार विदिशाएं मुक्तावली (मोतियों की लड़ी) के आकार की हैं। ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा रुचकाकार हैं, अर्थात्—मेरुपर्वत के मध्यभाग में ८ रुचकप्रदेश हैं, जिनमें से चार ऊपर की ओर और चार नीचे की ओर गोस्तनाकार हैं। यहाँ से दस दिशाएँ मूल में दो-दो प्रदेशी निकली हैं और आगे दो-दो प्रदेश की वृद्धि होती हुई लोकान्त तक एवं अलोक में चली गई हैं। लोक में असंख्यात प्रदेश तक और अलोक में अनन्त प्रदेश तक बढ़ी हैं। इसलिए इनकी आकृति गाड़ी के ओढण के समान है। चारों विदिशाएँ एक-एक प्रदेश वाली निकली हैं और लोकान्त तक एकप्रदेशी ही चली गई हैं। ऊर्ध्व और अधोदिशा चार-चार प्रदेश वाली निकली हैं और लोकान्त तक एवं अलोक में भी चली गई हैं। पूर्वदिशा जीवादिरूप है किन्तु वहाँ समग्र धर्मास्तिकायादि नहीं, किन्त धर्म, अधर्म एवं आकाश का एक देशरूप और असंख्यप्रदेशरूप हैं तथा अद्धा
व्यप्रदेशरूप हैं तथा अद्धा-समयरूप है। इस प्रकार अरूपी अजीवरूप सात प्रकार की पूर्वदिशा है।
९. अग्गेयी णं भंते ! दिसा किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा० पुच्छा।
गोयमा ! णो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि।जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा।अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियस्स देसे १, अहवा एगिंदियदेसा बेइंदियस्स देसा २, अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियाण य देसा ३। अहवा एगिंदियदेसा य तेइंदियस्स देसे, एवं चेव तियभंगो भाणियव्वो। एवं जाव अणिंदियाणं तियभंगो। जे जीवपदेसा ते नियमा एगिदियदेसा। अहवा एगिंदियपदेसा य बेइंदियस्स पदेसा, अहवा एगिदियपदेसा य बेइंदियाणं य पएसा। एवं आदिल्लविरहिओ जाव अणिंदियाणं।
जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–रूविअजीवा य अरूविअजीवा य। जे रूविअजीवा ते चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा–खंधा जाव' परमाणुपोग्गला ४। जे अरूविअजीवा से सत्तविधा १. 'सगडुद्धिसंठियाओ महादिसाओ हवंति चत्तारि।मुत्तावलीय चउरो दो चेव य होंति रुयगनिभे॥'
-भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९४ १. 'जाव' पद-सूचित पाठ—"खंधदेसा,खंधपएसा।"