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छठा शतक : उद्देशक-३
३१ [२६-१ प्र.] भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीयकर्म आहारक जीव बांधता है या अनाहारक जीव बांधता है ?
[२६-१ उ.] गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को आहारक और अनाहारक, दोनों प्रकार के जीव भजना से (कदाचित् बांधते और कदाचित् नहीं) बांधते हैं।
[२] एवं वेदणिज-आउगवजाणं छण्हं। । [२६-२] इसी प्रकार वेदनीय और आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष छहों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझ लेना चाहिए।
। [३] वेदणिजं आहारए बंधति, अणाहारए भयणाए। आउगं आहारए भयणाए, अणाहारए न बंधति।
[२६-३] आहारक जीव वेदनीय कर्म को बांधता है, अनाहारक के लिए भजना है अर्थात् कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता। (इसी प्रकार) आयुष्यकर्म को आहारक कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता।
२७.[१] णाणावरणिजं किं सुहमे बंधइ, बादरे बंधइ, नोसुहमे-नोबादरे बंधइ ? • गोयमा ! सुहुमे बंधइ, बादरे भयणाए नोसुहुमे-नोबादरे न बंधइ।
[२७-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म को क्या सूक्ष्म जीव बांधता है, बादर जीव बांधता है, अथवा नोसूक्ष्म-नोबादर जीव बांधता है ? ।
[२७-१ उ.] गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को सूक्ष्म जीव बांधता है, बादर जीव भजना से (कदाचित् बांधता है कदाचित् नहीं) बांधता है, किन्तु नोसूक्ष्म-नोबादर जीव नहीं बांधता।
[२] एवं आउगवजाओ सत्त वि। [२७-२] इसी प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्म-प्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। [३] आउए सुहुमे बादरे भयणाए, नोसुहुमेनोबादरे ण बंधइ।
[२७-३] आयुष्यकर्म को सूक्ष्म और बादरजीव भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते, नोसूक्ष्म-नोबादर जीव नहीं बांधता।
२८. णाणावरणिजं किं चरिमे बंधति, अचरिमें बं०? गोयमा ! अट्ठ वि भयणाए।
[२८ प्र.] भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीयकर्म (आदि अष्टविध) कर्म को चरमजीव बांधता है, अथवा अचरमजीव बांधता है ? __ [२८ उ.] गौतम ! चरम और अचरम; दोनों प्रकार के जीव, आठों कर्मप्रकृतियों को। (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं)। बांधते हैं।