________________
५८८
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वायुकाय को वृक्षमूलादि कंपाने-गिराने सम्बन्धी क्रिया
२३. वाउक्काइए णं भंते ! रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कइकिरिए ? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए ।
[२३. प्र.] भगवन् ! वायुकायिक जीव, वृक्ष के मूल को कंपाते हुए और गिराते हुए कितनी क्रिया वाले होते हैं ?
[२३ उ.] गौतम! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं।
२४. एवं कंदं। [२४] इसी प्रकार कंद को कंपाने आदि के सम्बन्ध में जानना चाहिए। २५. एवं जाव बीयं पचालेमाणे वा० पुच्छा। गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति.।
॥चउत्तीसइमो उद्देसो समत्तो॥९.३४॥
॥नवमं सतं समत्तं ॥९॥ [२५ प्र.] इसी प्रकार यावत् बीज को कंपाते या गिराते हुए आदि की क्रिया से सम्बन्धित प्रश्न । [२५ उ.] गौतम! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले, कदाचित् पांच क्रिया वाले
होते हैं।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं।
विवेचन वायुकायिकों द्वारा वृक्षादि कम्पन-पातन-सम्बन्धी क्रिया-वायुकायिक जीव वृक्ष के मूल को तभी कम्पित कर सकते हैं या गिरा सकते हैं, जबकि वृक्ष नदी के किनारे हो और उसका मूल पृथ्वी से ढंका हुआ न हो।
शंका-समाधान—वृक्ष के मूल को गिराने मात्र से पारितापनिकी सहित तीन क्रियाएं वायुकायिकजीवों को कैसे लग सकती हैं ? इसका समाधान वृत्तिकार यों करते हैं—'अचेतनमूल की अपेक्षा से तीन क्रियाएं सम्भव हैं।
॥ नवम शतक : चौतीसवाँ उद्देशक समाप्त॥
॥ नवम शतक समाप्त॥
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९२