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________________ ५८६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र और छोड़ता है। १२. आउक्काइए णं भंते ! पुढविक्काइयं आणमति वा पाणमति वा० ? एवं चेव। । [१२ प्र.] भगवन् ! अप्कायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीवों को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं ? [१२ उ.] गौतम ! पूर्वोक्तरूप से जानना चाहिए। १३. आउक्काइए णं भंते! आउक्काइयं चेव आणमति वा.? एवं चेव। [१३ प्र.] भगवन् ! अप्कायिक जीव, अप्कायिक जीव को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? [१३ उ.] (हाँ, गौतम!) पूर्वोक्तरूप से ही जानना चाहिए। १४. एवं तेउ-वाउ-वणस्सइकाइयं। [११] इसी प्रकार तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक के विषय में भी जानना चाहिए। १५. तेउक्काइए णं भंते ! पुढविक्काइयं आणमति वा०? एवं जाव वणस्सइकाइए णं भंते ! वणस्सइकाइयं चेव आणमति वा० ? तहेव। . [१५ प्र.] भगवन् ! तेजस्कायिक जीव पृथ्वीकायिकजीवों को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीव वनस्पतिकायिक जीव को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? [१५ उ.] (गौतम!) यह सब पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिए। _ विवेचन—एकेन्द्रिय जीवों की श्वासोच्छ्वास सम्बन्धी प्ररूपणा–प्रस्तुत सात सूत्रों (९ से १५ तक) में बताया गया है कि पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों को श्वासोच्छ्वास रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं। इसी प्रकार अप्कायिकादि चारों स्थावर जीव भी पृथ्वीकायिकादि पांचों स्थावर जीवों को श्वासोच्छ्वास रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं। इन पांचों के २५ आलापक (सूत्र) होते हैं। जैसे वनस्पति एक के ऊपर दूसरी स्थित हो कर उसके तेज को ग्रहण कर लेती है, उसी प्रकार पृथ्वीकायिकादि भी अन्योन्य सम्बद्ध होने से उस रूप में श्वासोच्छ्वास (प्राणापान). आदि कर लेते हैं। आणमति पाणमति : भावार्थ-आभ्यन्तर श्वास और उच्छ्वास लेता है। ऊससति नीससति—बाह्य श्वास और उच्छ्वास ग्रहण करते-छोड़ते हैं।' १. (क) भगवती. भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी) पृ. १७८१ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९२ २. वही, पत्र ४९२ ३. वही, पत्र ४९२
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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