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________________ नवम शतक : उद्देशक-३३ ५८१ गोयमा! जाव पंच तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवभवग्गहणाई संसार अणुपरियट्ठित्ता ततो पच्छा सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिइ।। सेवं भंते ! सेवं भंते !त्ति.। ॥जमाली समत्तो॥९-३३॥ [११२ प्र.] भगवन् ! वह जमालि देव उस देवलोक से आयु क्षय होने पर यावत् कहाँ उत्पन्न होगा? [११२ उ.] गौतम! तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव के पांच भव ग्रहण करके और इतना संसारपरिभ्रमण करके तत्पश्चात् वह सिद्ध होगा, बुद्ध होगा यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरण करने लगे। विवेचन-जमालि को परम्परा से सिद्धिगति-प्राप्ति—प्रस्तुत सू. ११२ में जमालि के भविष्य के विषय में पूछे जाने पर भगवान् ने भविष्य में तिर्यञ्च, मनुष्य और देव के ५ भव ग्रहण करने के पश्चात् सिद्धबुद्ध-मुक्त होने का कथन किया है। शंका-समाधान—यहाँ शंका उपस्थित होती है कि भगवान् सर्वज्ञ थे और जमालि के भविष्य में प्रत्यनीक होने की घटना को जानते थे, फिर भी उसे क्यों प्रव्रजित किया ? इसका समाधान वृत्तिकार इस प्रकार करते हैं—अवश्यम्भावी भवितव्य को महापुरुष भी टाल नहीं सकते अथवा इसी प्रकार ही उन्होंने गुणविशेष देखा होगा। अर्हन्त भगवान् अमूढलक्षी होने से किसी भी क्रिया में निष्प्रयोजन प्रवृत्त नहीं होते। ॥ नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक सम्पूर्ण॥ १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४८१ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९०
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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