________________
५५४
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र रुएँदार सुकोमल गन्धकाषायित सुगन्धियुक्त वस्त्र (तौलिये या अंगोछे) से उसके अंग (गात्र) पोंछे । उसके बाद सरस गोशीर्षचन्दन का अंग प्रत्यंग पर लेपन किया। तदनन्तर नाक के नि:श्वास की वायु से उड़ जाए, ऐसा बारीक, नेत्रों को आह्लादक (या आकर्षक) लगने वाला, सुन्दर वर्ण और कोमल स्पर्श से युक्त, घोड़े के मुख की लार से भी अधिक कोमल, श्वेत और सोने के तारों से जड़ा हुआ, महामूल्यवान् एवं हंस के चिह्न से युक्त पटशाटक (रेशमी वस्त्र) पहिनाया। फिर हार (अठारह लड़ी वाला हार) एवं अर्द्धहार (नवसरा हार) पहिनाया। जैसे राजप्रश्नीयसूत्र में सूर्याभदेव के अलंकारों का वर्णन है, उसी प्रकार यहाँ भी समझना चाहिए, यावत् विचित्र रत्नों से जटित मुकुट पहनाया। अधिकं क्या कहें! ग्रन्थिम (गूंथी हुई), वेष्टिम (लपेटी हुई), पूरिम-पूरी हुई भरी हुई और संघातिम (परस्पर सांधी हुई) रूप से तैयार की हुई चारों प्रकार की मालाओं से कल्पवृक्ष के समान उस जमालिकुमार को अलंकृत एवं विभूषित किया।
विवेचन-वस्त्राभूषणों से सुसज्जित : जमालिकुमार—प्रस्तुत ५७ वें सूत्र में दीक्षाभिलाषी जमालिकुमार को उसके माता-पिता द्वारा स्नानादि करवा कर बहुमूल्य वस्त्रों और सोने चांदी आदि के आभूषणों से सुसज्जित करने का वर्णन है।
कठिन शब्दों का विशेषार्थ-उत्तरावक्कमणं-उत्तराभिमुख -उत्तरदिशा की ओर। रयातिरचवाया या रखवाया। सेयापीतएहि-श्वेत (चांदी) और पीत (सोने) के। पम्हलसुकुमालाए–रोंएदार मुलायम वस्त्र (तौलिये) से । गायाइं लूहेंति-शरीर पोंछा । अणुलिंपंति—लेपन किया। नासा-निस्सासवायवोझं–नासिका के श्वास से उड़ जाए ऐसा बारीक। चक्खुहरं—नेत्रों को आनन्द देने वाला, आकर्षक। हयलालापेलवातिरेगं- घोड़े के मुँह की लार से भी अधिक नरम। कणगखचियंतकम्म- जिसके किनारों पर सोने के तार जड़े हुए थे। पिणद्धेति- धारण कराया। रयणसंकडुक्कडं-रत्नों से जटित। पूरिम-पिरोई हुई। संघातिम-परस्पर जोड़ी हुई। मल्लेणं-माला से।२ ।
५८. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासि—खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभसयसन्निविटें लीलट्ठियसालभंजियागं जहा रायप्पसेणइज्जे विमाणवण्णओ जाव मणिरयणघंटियाजालपरिखित्तं पुरिससहस्सवाहणीयं सीयं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४६७ २. भगवती. भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १७४० ३. राजप्रश्नीय में वर्णित विमानवर्णन यह है "ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-वालग-विहग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर
कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं.....खंभुग्गयवइरवेइयापरिगताभिरामं...विजाहरजमलजुयलजंतजुत्तं पिव,... अच्चीसहस्समालिणीयं,.... रूवगसहस्सकलियं, भिसमाणं..... भिब्भिसमाणं, चक्खुलोयणलेसं... सुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलिचलियमहरमणहरस्सरं, सुहं कंतं दरिसणिज्जं निउणोवियमिसिमिसंतमणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं......।"
-रायप्पसेणइज्जसुत्तं (गुर्जर.) पृ. १५५ कं. ९७