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________________ नवम शतक : उद्देशक-३३ ५५३ के अग्रकेश) हमारे लिए बहुत सी तिथियों, पौं, उत्सवों और नागपूजादिरूप यज्ञों तथा (इन्द्र) महोत्सवादिरूप क्षणों में क्षत्रियकुमार जमालि के अन्तिम दर्शनरूप होंगे।'-ऐसा विचार कर उन्हें अपने तकिये के नीचे रख दिया। विवेचन—माता ने जमालिकुमार के अग्रकेश सुरक्षित रखे—प्रस्तुत सूत्र में जमालिकुमार के उन अग्रकेशों को अर्चित करके रत्नपिटक में सुरक्षित रखने का वर्णन है। साथ ही यह बताया गया है कि उन्हें सुरक्षित रखने का कारण माता की ममता है कि भविष्य में जमालि के ये केश ही उसके दर्शन या स्मृति के प्रतीक होंगे । कठिन शब्दों का भावार्थ—पडिच्छइ-ग्रहण किये। हंसलक्खणेणं पडसाडएणं-हंस के समान श्वेत अथवा हंसचिह्न वाले पट-शाटक-वस्त्र की चादर अथवा पल्ले में । पक्खिवइ-रखे।अग्गेहिंप्रधान (अग्र) । वरेहिं— श्रेष्ठ। सिंदुवार–सिन्दुवार (निर्गुण्डी) के सफेद फूल । छिन्नमुत्तावलिप्पगासाईटूटी हुई मुक्तावली (मोतियों की माला) के समान। तिहीसु-तिथियों-मदन-त्रयोदशी आदि तिथियों में, पव्वणीसु–कार्तिक पूर्णिमा आदि पर्यों में। उस्सवेसु–प्रियजनों के संगमादि समारोहों में। जण्णेसुनागपूजा आदि यज्ञों में। छणेसु–इन्द्रमहोत्सवादिरूप क्षणों-अवसरों पर। अपच्छिमे दरिसणे—अन्तिम दर्शन। ओसीसगमूले-तकिये के नीचे । ठवेइ-रख देती है। ५७. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मा-पियरो दुच्चं पि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयाति, दुच्चं पि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयावित्ता जमालिं खत्तियकुमार सेयापीतएहि कलसेहिं ण्हाणेति, से०२२ पम्हसुकुमालाए सुरभीए गंधकासाइए गायाइं लूहेंति, सुरभीए गंधकासाइए गायाई लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाइं अणुलिंपंति गायाइं अणुलिंपित्ता नासानिस्सासवायवोझं चक्खुहरंवण्णफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगंधवलंकणगखचियंतकम्मं महरिहं हंसलक्खणं पडसाडगं परिहिंति, परिहित्ता हारं पिणखेंति, २ अद्धहारं पिणखूति, अ० पिणद्धित्ता एवं जहा सूरियाभस्स अलंकारो तहेव जाव चित्तं रयणसंकडुक्कडं मउडं पिणद्धति, किं बहुणा ? गंथिम-वेढिम-पूरिम संघातिमेणं चउव्विहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव अलंकियविभूसियं करेंति। _ [५७] इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता ने दूसरी बार भी उत्तरदिशाभिमुख सिंहासन रखवाया और क्षत्रियकुमार जमालि को श्वेत और पीत (चांदी और सोने के) कलशों से स्नान करवाया। फिर १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४६७ २. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४७७ (ख) भगवती भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी) पृ. १३३७ ३. पूरा पाठ-"सेयापीतएहिं कलसेहिं ण्हाणेत्ता।" ४. राजप्रश्नीय में सूर्याभदेव के अलंकार का वर्णन—“एगावतिं पणिद्धति, एवं मुक्तावलिं कणगावलिं रयणावलि अगयाइं केउराई कडगाइं तुडियाइं कडिसुत्तयंदसमुद्दयाणंतय वच्छसुत्तं मुरविं कंठमुरविं पालंबं कुंडलाइंचूडामणिं।" -भगवती. अ. वृ. ४७७, पत्र, रायप्पसेणइज्जं (गुर्जर) पृ. २५१-२५२ कण्डिका १३७ - .
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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