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छठा शतक : उद्देशक-३
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[१५-३] आयुष्यकर्म को नीचे के दो-सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि - भजना से बांधते हैं (अर्थात् कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं बांधते ।) सम्यग् - मिथ्यादृष्टि (सम्यग्-मिथ्यादृष्टि अवस्था में) नहीं बांधते । १६. [१] णाणावरणिज्जं किं सण्णी बंधइ, असण्णी बंधई, नोसण्णीणोअसण्णी बंधइ ? गोयमा ! सण्णी सिय बंधइ सिय नो बंधइ, असण्णी बंधइ, नोसण्णीनोअसण्णी न बंधइ | [१६- १ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म को क्या संज्ञी बांधता है, असंज्ञी बांधता है अथवा नोसंज्ञीनोअसंज्ञी बांधता है ?
[१६-१ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीयकर्म को) संज्ञी कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता । असंज्ञी बांधता है और नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी नहीं बांधता ।
[२] एवं वेदणिज्जाऽऽउगवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ ।
[१६-२] इस प्रकार वेदनीय और आयुष्य को छोड़ कर शेष छह कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए ।
[ ३ ] वेदणिज्जं हेट्ठिल्ला दो बंधंति, उवरिल्ले भयणाए । आउगं हेट्ठिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले न बंधइ ।
[१६-३] वेदनीयकर्म को आदि के दो (संज्ञी भी और असंज्ञी भी) बांधते हैं, किन्तु अन्तिम के लिए भजना है अर्थात् नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता। आयुष्यकर्म को नीचे के दो संज्ञी और असंज्ञी जीव भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं। नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी जीव • आयुष्यकर्म को नहीं बांधते ।
२७. [ १ ] णाणावरणिज्जं कम्मं किं भवसिद्धीए बंधइ, अभवसिद्धीए बंधइ, नो भवसिद्धीएनोअभवसिद्धिए बंधति ?
गोमा ! भवसिद्धी भयणाए, अभवसिद्धीए बंधति, नोभवसिद्धीए - नोअभवसिद्धीए ण
बंधइ ।
[१७-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म को क्या भवसिद्धिक बांधता है, अभवसिद्धिक बांधता है अथवा नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक बांधता है ?
[२७-१ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीयकर्म को) भवसिद्धिक जीव भजना से (कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं) बांधता है। अभवसिद्धिक जीव बांधता है और नोभवसिद्धिक- नोअभवसिद्धिक जीव नहीं बांधता ।
[२] एवं आउगवज्जओ सत्त वि ।
[१७-२] इसी प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए।