SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २६ नोनपुंसओ न बंधइ । [१३ प्र.] भगवन् ! आयुष्यकर्म को क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है, नपुंसक बांधता है अथवा नोस्त्री-नोपुरुष - नोनपुंसक बांधता है। T [१३ उ.] गौतम ! आयुष्यकर्म स्त्री कदाचित् बांधती है और कदाचित् नहीं बांधती । इसी प्रकार पुरुष और नंपुसक के विषय में भी कहना चाहिए। नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक आयुष्यकर्म को नहीं बांधता । १४. [१] णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं संजते बंधइ, असंजते०, संजयासंजए बंधड़, नोसंजए - नोअसंजए-नोसंजयासंजए बंधति । [१४-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म क्या संयत बांधता है, असंयत बांधता है, संयतासंयत बांधता है अथवा नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत बांधता है ? [१४-१ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीयकर्म को) संयत कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता, किन्तु असंयत बांधता है, संयतासंयत भी बांधता है, परन्तु नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत नहीं बांधता । [ २ ] एवं आउगवज्जाओ सत्त वि । [१४-२] इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए। [३] आउगे हेट्ठिल्ला तिण्णि भयणाए, उवरिल्ले णं बंधइ । [१४-३] आयुष्यकर्म के सम्बंध में नीचे के तीन-संयत, असंयत और संयतासंयत के लिए भजना समझनी चाहिए। (अर्थात् कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते) नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत आयुष्यकर्म को नहीं बांधते । १५. [१] णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं सम्मद्दिट्ठी बंधइ, मिच्छद्दिट्ठी बंधइ, सम्मामिच्छाद्दिट्ठी बंधइ ? गोमा ! सम्मट्ठी सय बंधइ सिय नो बंधइ, मिच्छद्दिट्ठी बंधड़, सम्मामिच्छद्दिट्ठी बंध | [१५-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म क्या सम्यग्दृष्टि बांधता है, मिथ्यादृष्टि बांधता है अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि बांधता है ? [१५-१ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय कर्म को ) सम्यग्दृष्टि कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता, मिथ्यादृष्टि बांधता है और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी बांधता है। [२] एवं आउगवज्जाओ सत्त वि । [१५-२] इसी प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्म प्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए। [ ३ ] आउगे हेट्ठिल्ला दो भयणाए, सम्मामिच्छद्दिट्ठी न बंध |
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy