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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
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नोनपुंसओ न बंधइ ।
[१३ प्र.] भगवन् ! आयुष्यकर्म को क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है, नपुंसक बांधता है अथवा नोस्त्री-नोपुरुष - नोनपुंसक बांधता है।
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[१३ उ.] गौतम ! आयुष्यकर्म स्त्री कदाचित् बांधती है और कदाचित् नहीं बांधती । इसी प्रकार पुरुष और नंपुसक के विषय में भी कहना चाहिए। नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक आयुष्यकर्म को नहीं बांधता ।
१४. [१] णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं संजते बंधइ, असंजते०, संजयासंजए बंधड़, नोसंजए - नोअसंजए-नोसंजयासंजए बंधति ।
[१४-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म क्या संयत बांधता है, असंयत बांधता है, संयतासंयत बांधता है अथवा नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत बांधता है ?
[१४-१ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीयकर्म को) संयत कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता, किन्तु असंयत बांधता है, संयतासंयत भी बांधता है, परन्तु नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत नहीं बांधता । [ २ ] एवं आउगवज्जाओ सत्त वि ।
[१४-२] इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए। [३] आउगे हेट्ठिल्ला तिण्णि भयणाए, उवरिल्ले णं बंधइ ।
[१४-३] आयुष्यकर्म के सम्बंध में नीचे के तीन-संयत, असंयत और संयतासंयत के लिए भजना समझनी चाहिए। (अर्थात् कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते) नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत आयुष्यकर्म को नहीं बांधते ।
१५. [१] णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं सम्मद्दिट्ठी बंधइ, मिच्छद्दिट्ठी बंधइ, सम्मामिच्छाद्दिट्ठी बंधइ ?
गोमा ! सम्मट्ठी सय बंधइ सिय नो बंधइ, मिच्छद्दिट्ठी बंधड़, सम्मामिच्छद्दिट्ठी बंध | [१५-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म क्या सम्यग्दृष्टि बांधता है, मिथ्यादृष्टि बांधता है अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि बांधता है ?
[१५-१ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय कर्म को ) सम्यग्दृष्टि कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता, मिथ्यादृष्टि बांधता है और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी बांधता है।
[२] एवं आउगवज्जाओ सत्त वि ।
[१५-२] इसी प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्म प्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए। [ ३ ] आउगे हेट्ठिल्ला दो भयणाए, सम्मामिच्छद्दिट्ठी न बंध |