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________________ ५४८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्रवृत्त के लिए। करणयाए–संयम का आचरण करना। जमालि को प्रव्रज्याग्रहण की अनुमति दी ४५. तय णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा-पियरो जाहे नो संचाएंति विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य बहुहि य आघवणाहि य पण्णवणाहि य सन्नवणाहि य विण्णवणाहि य आघवेत्तए वा जाव विण्णवेत्तए वा ताहे अकामाई चेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स निक्खमणं अणुमन्नित्था। [४५] जब क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता विषय के अनुकूल और विषय के प्रतिकूल बहुत-सी उक्तियों, प्रज्ञप्तियों, संज्ञप्तियों और विज्ञप्तियों द्वारा उसे समझा-बुझा न सके, तब अनिच्छा से उन्होंने क्षत्रियकुमार जमालि को दीक्षाभिनिष्क्रमण (दीक्षाग्रहण) की अनुमति दे दी। विवेचन—निरुपाय माता-पिता द्वारा जमालि को दीक्षा की अनुमति—प्रस्तुत सूत्र ४५ में यह निरूपण किया गया है कि जमालि के माता-पिता जब अनुकूल और प्रतिकूल युक्तियों, तर्कों, हेतुओं एवं प्रेमानुरोधों से समझा-बुझा चुके और उस पर कोई प्रभाव न पड़ा, तब निरुपाय होकर उन्होंने दीक्षाग्रहण करने की अनुमति दे दी। कठिन शब्दों के भावार्थ—अकामाई-अनिच्छा से, अनमने भाव से। निक्खमणं अणुमन्नित्थादीक्षा ग्रहण करने के लिए अनुमति दी। जमालि के प्रव्रज्याग्रहण का विस्तृत वर्णन ४६. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी—खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! खत्तियकुंडग्गामं नगरं सब्भितरबाहिरियं आसियसम्मज्जिओवलित्तं जहा उववाइए जाव पच्चप्पिणंति। [४६] तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उन्हें इस प्रकार कहा—हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के अन्दर और बाहर पानी का छिड़काव करो, झाड़/बुहार १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४७२ (ख) भगवती. भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १७३१ २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४६४ ३. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४७२ ४. उववाईसूत्र के अनुसार पाठ इस प्रकार है-सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु आसित्त सित्तसुइयसम्मट्टरत्यंतरावणवीहियं.........मंचाइमंचकलिअंणाणाविहरागउच्छियज्झय-पडागाइपडागमंडियं........ इत्यादि। औपपातिक सूत्र, पत्र ६१, सू. २९
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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