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________________ ५४२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों का उपभोग करके भुक्तभोगी होने के पश्चात् दीक्षित होना।' कठिन शब्दों का भावार्थ विपुलकुलबालियाओ—विशाल कुल की बालाएँ। कलाकुसलसव्वकाललालिय-सुहोचियाओ-कलाओं में दक्ष, सदैव लाड़-प्यार में पली एवं सुखशील ।मद्दवगुणजुत्तनिउण-विणओवयारपंडिय-वियक्खणाओ-मृदुता के गुणों से युक्त, निपुण एवं विनय-व्यवहार में पण्डिता तथा विचक्षणा हैं। मंजुल-मिय-महुर-भाणिय-विहसिय-विपेक्खिय-गति-विलास-चिट्ठियविसारदाओ-मंजुल, परिमित एवं मधुरभाषिणी हैं, हास्य, प्रेक्षण, गति (चाल), विलास एवं चेष्टाओं में विशारद हैं। अविकलकुलसीलसालिणीओ-निर्दोष कुल और शील से सुशोभित हैं। विसुद्धकुलवंससंताणतंतुवद्धण-पगब्भ-वय-भाविणीओ-विशुद्ध कुल की वंश-परम्परा रूपी तन्तु को बढ़ाने वाली एवं प्रगल्भ-पूर्ण यौवन वय वाली हैं। मणाणुकूल-हियइच्छियाओ—मनोनुकूल हैं और हृदय को अभीष्ट हैं। भावाणुरत्तसव्वंगसुन्दरीओ-ये तेरी भावनाओं में अनुरक्त हैं और सर्वांगसुन्दरी हैं। विसयविगयवोच्छिन्नकोउहल्ले—विषय-विकारों (विकृतों) सम्बन्धी उत्सुकता क्षीण हो जाने पर। ४०. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अभ्मा-पियरो एवं वासी—तहा विणं तं अम्म! ताओ! जं णं तुब्भे मम एवं वयह 'इमाओ ते जाया! विपुलकुल० जाव पव्वइहिसि' एवं खलु अम्म! ताओ! माणुस्सगा कामभोगा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-पूय-सुक्क-सोणियसमुब्भवा अमणुण्णदूरूव-मुत्त-पूइयपुरीसपुण्णा मयगंधुस्सासअसुभनिस्सासा उव्वेयणगा बीभच्छा अप्पकालिया लहुसगा कलमलाहिवासदुक्खबहुजणसाहारणा परिकिलेस-किच्छदुक्खसज्झा अबुहजणसेविया सदा साहुगरहणिज्जा अणंतसंसारवद्धणा कडुयफलविवागा चुडिल व्व अमुच्चमाण दुक्खाणुबंधिणो सिद्धि-गमणविग्घा, से केस णं जाणइ अम्म! ताओ! के पुव्वि गमणयाए ? के पच्छा गमणयाए ? तं इच्छामि णं अम्म! ताओ ! जाव पव्वइत्तए। । [४०] माता-पिता के पूर्वोक्त कथन के उत्तर में जमालि क्षत्रियकुमार ने अपने माता-पिता से इस प्रकार कहा—हे माता-पिता ! तथापि आपने जो यह कहा कि विशाल कुल में उत्पन्न तेरी ये आठ पत्नियाँ हैं, यावत् भुक्तभोग और वृद्ध होने पर तथा हमारे कालधर्म को प्राप्त होने पर दीक्षा लेना, किन्तु माताजी और पिताजी ! यह निश्चित है कि ये मनुष्य-सम्बन्धी कामभोग (अशुचि (अपवित्र) और अशाश्वत हैं,) मल (उच्चार), मूत्र श्लेष्म (कफ), सिंघाण (नाक का मैल-लीट), वमन, पित्त, मवाद (पूति), शुक्र और शोणित (रक्त या रज) से उत्पन्न होते हैं, ये अमनोज्ञ और दुरूप (असुन्दर) मूत्र तथा दुर्गन्धयुक्त विष्ठा से परिपूर्ण हैं, मृत कलेवर के समान गन्ध वाले उच्छवास एवं अशुभ नि:श्वास से युक्त होने से उद्वेग (ग्लानि) पैदा करने वाले हैं। ये बीभत्स हैं, अल्पकालस्थायी हैं, तुच्छस्वभाव के हैं, कलमल (शरीर में रहा हुआ एक प्रकार का अशुभ द्रव्य) १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मू. पा. टि.), भा. १, पृ. ४६२ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४७० ३. अधिक पाठ-"असुई असासया वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा।"
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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