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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्रव्रज्या का संकल्प सुनते ही माता शोकमग्न ३४. तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माता तं अणिठें अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं असुयपुव्वं गिरं सोच्चा निसम्म सेयागयरोमकूवपगलंतविलीणगत्ता सोगभरपवेवियंगमंगी नित्तेया दीणविमणवयणा करयलमलिय व्व कमलमाला तक्खणओलुग्गदुब्बलसरीरलायन्नसुन्ननिच्छाया गयसिरीया पसिढिलभूसणपडतखुण्णियसंचुणियधवलवलयपब्भट्ठउत्तरिज्जा मुच्छावसणटेचेतगुरुई सुकुमालविकिण्णके सहत्था परसुणियत्त व्व चंपगलता निव्वत्तमहे व्व इंदलट्ठी विमुक्कसंधिबंधणा कोट्टिमतलंसि धस त्ति सव्वंगेहिं सन्निवडिया। [३४] इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि की माता उसके उस (पूर्वोक्त) अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ, मन को अप्रिय और अश्रुतपूर्व (आघातकारक) वचन सुनकर और अवधारण करके (शोकमग्न हो गई।) रोमकूप से बहते हुए पसीने से उसका शरीर भीग गया। शोक के भार से उसके अंग-अंग कांपने लगे। (चेहरे की कान्ति) निस्तेज हो गई। उसका मुख दीन और उन्मना हो गया। हथेलियों से मसली हुई कमलमाला की तरह उसका शरीर तत्काल मुझ गया एवं दुर्बल हो गया। वह लावण्यशून्य, कान्तिरहित और शोभाहीन हो गई। (उसके शरीर पर पहने हुए) आभूषण ढीले हो गए। उसके हाथों की धवल चूड़ियाँ (वलय) नीचे गिर कर चूर-चूर हो गई। उसका उत्तरीय वस्त्र (ओढना) अंग से हट गया। मूर्छावश उसकी चेतना नष्ट हो गई। शरीर भारी-भारी हो गया। उसकी सुकोमल केशराशि बिखर गई। वह कुल्हाड़ी से काटी हुई चम्पकलता की तरह एवं महोत्सव समाप्त होने के बाद इन्द्रध्वज (दण्ड) की तरह शोभाविहीन हो गई। उसके सन्धिबन्धन शिथिल हो गए और वह एकदम धस करती हुई (धड़ाम से) सारे ही अंगों सहित फर्श पर गिर पड़ी। विवेचनदीक्षा की बात सुनकर शोकमग्न माता-जमालिकुमार (पुत्र) की प्रव्रज्या ग्रहण करने की बात सुनते ही मोह-ममत्ववश माता की जो अवस्था हुई और वह मूछित हो कर गिर पड़ी, इसका वर्णन प्रस्तुत सूत्र में है। कठिन शब्दों का अर्थ—अमणामं—मन के विपरीत, अनिच्छनीय। असुयपुव्वं—पहले कभी नहीं सुनी हुई। सेयागय-रोमकूव-पगलंत-विलीणगत्ता-रोमकूपों में से झरते हुए पीसने से शरीर तरबतर हो गया। सोगभरपवेवियंगमंगी-शोक के भार से अंग-अंग कांपने लगे। नित्तेया—निस्तेज (मुहई हुई)। दीणविमणवयणा-उसका मुख दीन एवं विमन (उदास) हो गया। करयलमलिय व्व कमलमाला–हथेलियों से मर्दित की हुई कमलमाला के समान । तक्खण-ओलुग्ग-दुब्बल-सरीर, लायन्नसुन्न-निच्छाया—उसी क्षण जिसका शरीर ग्लान एवं दुर्बल, लावण्य से शून्य एवं प्रभारहित हो गया। गयसिरिया-वह श्री (शोभा)-रहित हो गई। पसिढिल-भूसण-पडंत-खुण्णिय-संचुण्णियधवलवलय-पब्भट्ट-उत्तरिजा- उसके आभूषण ढीले हुए, श्वेत वलय (कंगन) गिरकर चूर-चूर हो गए, शरीर से उत्तरीयवस्त्र (ओढना) सरक गया। मुच्छावसणट्ठचेतगुरुई-मूर्छावश उसकी चेतना (संज्ञा)
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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