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________________ नवम शतक : उद्देशक-३२ ५०९ पवेसणए असंखेजगुणे, जोइसियदेवपवेसणए संखेजगुणे। _ [४६ प्र.] भगवन् ! भवनवासीदेव-प्रवेशनक, वाणव्यन्तरदेव-प्रवेशनक, ज्योतिष्कदेव-प्रवेशनक और वैमानिकदेव-प्रवेशनक, इन चारों प्रवेशनकों में से कौन प्रवेशनक किस प्रवेशनक से अल्प, यावत् विशेषाधिक [४६ उ.] गांगेय! सबसे थोड़े वैमानिकदेव-प्रवेशनक हैं, उनसे भवनवासीदेव-प्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं, उनसे वाणव्यन्तरदेव-प्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं और उनसे ज्योतिष्कदेव-प्रवेशनक संख्यातगुणे हैं। विवेचन चारों देव-प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व-वैमानिकदेव सबसे कम होते हैं और उनमें जाने वाले (प्रवेशनक) जीव भी सबसे थोड़े होते हैं, इसीलिए अल्पबहुत्व में पारस्परिक तुलना की दृष्टि से कहा गया है कि वैमानिकदेव-प्रवेशनक सबसे अल्प हैं। नारक-तिर्यञ्च-मनुष्य-देव प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ४७. एयस्सणं भंते ! नेरइयपवेसणगस्स तिरिक्ख० मणुस्स० देवपवेसणगस्स यकयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिए वा ? गंगेया ! सव्वत्थोवेमणुस्सपवेसणए, नेरइयपवेसणए असंखेजगुणे, देवपवेसणए असंखेजगुणे, तिरिक्खजोणियपवेसणए असंखेज्जगुणे। [४७ प्र.] भगवन्! इन नैरयिक-प्रवेशनक, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक, मनुष्य-प्रवेशनक और देवप्रवेशनक, इन चारों में से कौन किससे अल्प, यावत् विशेषाधिक है। [४७ उ.] गांगेय! सबसे अल्प.मनुष्य-प्रवेशनक है, उससे नैरयिक-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है, और उससे देव-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है, और उससे तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है। विवेचन–चारों गतियों के जीवों के प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व- सबसे अल्प मनुष्य-प्रवेशनक है, क्योंकि मनुष्य सिर्फ मनुष्यक्षेत्र में ही हैं, जो कि बहुत ही अल्प हैं। उससे नैरयिक-प्रवेशनक असंख्यातगुणा है, क्योंकि नरक में जाने वाले जीव असंख्यातगुणा हैं, इसी प्रकार देव-प्रवेशनक और तिर्यञ्चयोनिकप्रवेशनक के विषय में समझना चाहिए।' चौबीस दण्डकों में सान्तर-निरन्तर उपपाद-उद्वर्तनप्ररूपणा ४८.संतरंभंते ! नेरइया उववजंति ? निरंतरं नेरइया उववज्जंति? संतरं असुरकुमारा उववजंति? निरंतरं असुरकुमारा जाव संतरं वेमाणिया उववजंति ? निरंतरं वेमाणिया उववजंति ? संतरं नेरइया १. भगवती. अ. वृत्ति; पत्र ४५३ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४५३
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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