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________________ ५०८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र . उत्कृष्टरूप से देव-प्रवेशनक-प्ररूपणा ४५. उक्कोसा भंते ! • पुच्छा। गंगेया ! सव्वे वि ताव जोइसिएसु होजा। अहवा जोइसिय-भवणवासीसु य होज्जा। अहवा जोइसिय-वाणमंतरेसु य होज्जा। अहवा जोइसिय-वेमाणिएसु य होज्जा। अहवा जोइसिएसु य भवणवासीसु य वाणभंतरेसु य होज्जा।अहवा जोइसिएसु य भवणवासीसु य वेमाणिएसु य होज्झा। अहवा जोइसिएसु य वाणमंतरेसु य वेमाणिएसु य होज्जा। अहवा जोइसिएसु य भवणवासीसु य वाणमंतरेसु य वेमाणिएसु य होज्जा। [४५ प्र.] भगवन्! उत्कृष्टरूप से देव, देव-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए किन देवों में होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। [४५ उ.] गांगेय! वे सभी ज्योतिष्क देवों में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क और भवनवासी देवों में होते हैं, अथवा ज्योतिष्क और वाणव्यन्तर देवों में होते हैं, अथवा ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वाणव्यन्तर देवों में होते हैं, अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वैमानिक देवों में होते हैं, अथवा ज्योतिष्क, वाणव्यन्तर और वैमानिक देवों में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी, वाणव्यन्तर और वैमानिक देवों में होते हैं। विवेचन उत्कृष्ट देव-प्रवेशनक-प्ररूपणा—ज्योतिष्क देवों में जाने वाले जीव बहुत होते हैं। इसलिए उत्कृष्टपद में कहा गया है कि ये सभी ज्योतिष्क देवों में होते हैं। द्विकसंयोगी ३ भंग-ज्यो. वाण., ज्यो. वै., या ज्यो. भ. देवों में। त्रिकसंयोगी ३ भंग-ज्यो. भ. वा., ज्यो. भ. वै., एवं ज्यो. वा. वै.। चतुष्कसंयोगी एक भंग- ज्योतिष्क, भ., वा. वैमा.। भवनवासी आदि देवों के प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ४६. एयस्स णं भंते ! भवणवासिदेवपवेंसणगस्स वाणमंतरदेवपवेसणगस्स जोइसियदेवपवेसणगस्स वेमाणियदेवपवेसणगस्स य कयरे कयरेहिंतो वा जाव विसेसाहिए वा ? गंगेया ! सव्वत्थोवे वेमाणियदेवपवेसणए, भवणवासिदेवपवेसणए असंखेजगुणे,वाणमंतरदेव१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४५
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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